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मंगलवार, 4 अगस्त 2015

उगलियाँ ही उगलियौं मे गढ़ रही हैं ऐसा क्यों?

ऐसा क्यों ?


उगलियाँ ही उगलियौं मे गढ़ रही हैं
ऐसा क्यों?
जो लताएँ आज तक
चढ़ती थी ऊचे पेड पर
हर हरा कर टूटते
गहरे कुएँ में गिर रहीं हैं
ऐसा क्यों?

मान्यताएँ फिर हुई बूढ़ी
अन्ध विश्वासों ने बनाएँ घर
अब न मौसम बन बरसतें हैं
स्याह बादल से भयावह डर
एड़ियों पर चोटियों से जो टपकती थी कभी
बूँद श्रम की नम नयन से झर रही है
ऐसा क्यों ?

लोग कहते हैं विवशता से
दोष सारे हैं व्वस्था के
नहीं बदला रूख हवाओं ने
गर्म मौसम की अवस्था से
फिर न दोहराओ सवालो को
आग हो जाते हैं रखवारे
पीढ़ियाँ ही पीढ़ियों से चिड रही हैं
ऐसा क्यों ?

विज्ञ बनते हैं बहुत सारे
व्यापते हैं जब भी अंधियारे
इस लड़ाई का नहीं मकसद
हो गये हैं आज सब न्यारे
कौम, वर्ग, विकल्प और विभीषकाएँ क्या
हर नये सिध्दांत की बाते वही है
खोखली दिक् चेतना से हर शिराएँ थक गई है
ऐसा क्यों ?
              कमलेश कुमार दीवान
                       ६ जनवरी १९८८
                                                                                                                                                                                                           


शनिवार, 23 मई 2015

लोग बदल जाते हैं

मानव जीवन के अनुभव और यथार्थ से उपजी पीढ़ाओं को हम गीतो मे व्यक्त करते है हमे इस सचाई को नही भुलना चाहिये कि दुनियाँ परिवर्तनशील है यहाँ सब कुछ बदलते चला जाता हैा मेरा यह गीत बदलते हुये दुनियावी रिश्तो के मायावी सच को प्रदर्शित करता है देखे ....
लोग बदल जाते हैं..........

लोग बदल जाते हैं

जाने पहचाने
पथ पर चलते
लोग बदल जाते है ।
लोग बदल जाते है ।

साथी का साथ
नही मिलता
अपनो का हाथ
नही बढ़ता
बढ़ता अपेक्षाओ का सागर
खाली खाली रह गई डगर
हम बिखर बिखर कर
सिमट गये
अपनाने हाथ बढ़ाये जब
सपनो का साथ नही मिलता
पल पल क्षण क्षण
ढल जाते है
लोग बदल जाते है
जाने पहचाने
पथ पर चलते
लोग बदल जाते हैं

कमलेश कुमार दीवान
२२ मार्च २०१५

शुक्रवार, 1 मई 2015

"मिलते जुलते रहें समय से "...... एक गीत

आधुनिक युग समय के प्रबँधन का युग है ।लोगो का आपसी मेल मिलाप कम है । परस्पर मिलने जुलने और व्यवहार निबाहने से समाज मे सुख दुख बटते चले जाते है जीवन आसान होता है परन्तू  एक दूसरे से दूरियाँ बढ़ गई है ।मेरा यह गीत समय के साथ कदमताल करते हुये जीवन जीने से सबँधित है ।  कृपया पढ़े ...

"मिलते जुलते रहें समय से "...... एक गीत

मिलते जुलते रहें
समय से
सुख लगता है
ये दुनियाँ तो आसूँ वाली है
फिर भी उत्सव
और खुशहाली है
खिलते खुलते रहें
समय से
दुख भगता है ।
मिलते जुलते रहे
समय से
सुख लगता है ।

करते रहे जुगाड़
लिये फिर आड़
ये झुरमुट कैसे है
चंदन वन मे
चाँद सितारे कहाँ
वहाँ तो पैसे है
रूपया वालो का आसमान
बाकी सब  ख्याली है
चादर सिलते रहे
किस तरह मलाली है
पलते पुसते रहे
समय से
जग सजता है
मिलते जुलते रहे
समय से
सुख लगता है

कमलेश कुमार दीवान
लेखक
12/04/ 2015

रविवार, 19 अप्रैल 2015

एक देश की सार्वभौमिकता सम्प्रभुता काश्मीर के संदर्भ मे

एक देश की सार्वभौमिकता  सम्प्रभुता काश्मीर के संदर्भ मे

विश्व के अनेक देशो मे अनेक प्रकार के संघर्ष लोकतँत्र और प्रशासनिक सत्ताओ से तरजीह नहीं मिलने के परिणामस्वरूप असंतूष्ट गुटो या पृथकतावादी जमातो व्दारा संचालित किये जा रहे है जिनके पास सरकार जैसे हथियार और अग्यात स्त्रोतो से प्राप्त हो रहा धन वल है ।किन्तु प्रश्न है कि जब तक किसी देश के नागरिक शामिल न हो तब तक विदेशी ताकते किसी दूसरे देश के आंतरिक भागो मे अराजकता पैदा नही कर सकती है ।विश्व के कई देश है जो अपने अस्तित्व से पुर्व छोटे देशो मे बँटे हुये थे एक देश बने है उनमे हमारा देश भअरत भी है । एक देश मे दूसरा देश बनाने की कवायदे अंतर्राष्ट्रीय जुर्म होना चाहिये  अन्यथा देश के कई भागो मे नये देश बनाने या फिर भूभागो को दूसरे देश मे मिलाने के आंदोलन प्रारंभ हो सकते है । यह देश की सम्प्रभुता के प्रश्न है ।
  काश्मीर मे पाक झँडे फहराने या भारत विरोधी मुहिम कोई नई बात नही है ।हमे यह समझना चाहिये कि आजादी के आंदोलन  के पश्चात देश निर्माण की प्रकिया मे काश्मीर का भी विलय भारत के साथ हुआ है और यह वैधानिक है ।फिर यह उकसावे और आंदोलन क्यों?हमे देश हित के लिये बहुत सख्त रूख अपनाना चाहिये । हमे याद रखना होगा कि जो समस्या को पैदा करते है उन्ही के अंदर रहते लोग उसका समाधान भी लाते है ,अर्थात् समय के साथ समस्याओं के निदान करना आवश्यक है हमे तुरंत पहल करने की मानसिकता बनानी चाहिये ।

मै यहाँ अपना एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ ...देखे

वतन मे लोक जिंदा है

यह तो सन्मान है मेरे वतन मे लोक जिंदा है
वरन् इस देश को कई देश होते देखना होता ।
जो बर्बर थे लुटे,मिटे कुछ तानाशाही से
बची है राजशाही तब वहाँ जन अधिकार देने से
मेरा यह गान है जनतंत्र सबका हो
तिरँगा एक हो यह मंत्र सबका हो
बँटे क्यों जातियों मे हम
लुटे क्यों साथियों से हम
यही संघर्ष आजादी सबकी बिरासत है
मगर अब वोट की खातिर
बँटे क्यों वादियों मे हम
मुझे यह ग्यान कि मेरे जेहन मे ध्वज तिरँगा है
मुझे अभिमान है मैरे वतन मे लोक सत्ता हैं
यह तो सनमान है मेरे वतन मे लोक जिंदा है ।

कमलेश कुमार दीवान
लेखक
7 अप्रेल 2015

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

बास बास तो बास है

बास
बास तो बास है
होता है सभी जगह
और हमारे आसपास
सभी आम है पर
बास तो खासम खास है
बास तो बास है ।
बास तो बास है
किसी किसी के खास है
सभी डरते है
पानी और पानी
भरते है
एक के बाद एक
आदेशो का पालन करते है
फिर भी सब उदास हैं
आखिर बास तो बास है ।

कमलेश कुमार दीवान
6 अप्रेल 2015 

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

संसदीय लोकतंत्र मे सरकार के अपने कामकाज की समीक्षा (poem hindi geet ) लोकतंत्र का गान....

लगातार समाचारो मे यह बताया जा रहा है संसदीय लोकतंत्र मे सरकार के १०० दिन पूरे हुये वह अपने कामकाज की समीक्षा कर रही है एक कहावत के अनुसार " अढ़ाई कोश चलने" से ज्यादा कुछ नही है ।रात भर पीसकर पारे मे उठाने जैसा है देश मे आजादी के बाद से  ही समानान्तर रूप से बहुस्तरीय सरकारे चल रही है जिसे स्वशासन और पंचायती राज ने और अधिक व्ययसाध्य बना दिया है ।भारतीय लोकतंत्र एक ऐसा पेड़ है जो जनता के लिये बोनासाई और अन्य( नेतृत्व,अफसर बैंकर्स ठेकेदार आदि आदि) के लिये फलदार बगीचा एवम् अमराई है ।
अर्थात् व्यवस्थाओं मे कोई परिवर्तन नही होता है । नौकर शाही रूपी बादवानी घोड़े पर सवारी गाँठना आसान नही है । अतएव सरकारो के बदलने ,उनके कामकाज की समीक्षा करने ,अकाज पर अफसोस जताने  समस्याओं पर सूझाव देने,सरकार व्दारा उसे मानने का विश्वास रखने  का कोई अर्थ नहीं है ।यह एक झुठी दिलासा है  मृगमरीचिका से भी बढ़कर है ।
लोकतंत्र मे राजनैतिक नेतृत्व बहुत लाचार होता है वह चुनाव के मैदान मे धरती से चाँद तारे तोड़ लाने के सपने दिखाता है किन्तु जब स्थाई सत्ता और वास्तविकताओ से सामना होता है तब लाचार हो जाता है ।लोकतंत्र मे नेतृत्व की  विवशताओ को
रेखाँकित करता यह गीत आपके समक्ष सादर प्रस्तुत है  यह लोकतंत्र का असली गीत .. गान है ...मेरे ब्लोग और.वेव पत्रिका अनुभूति मे प्रकाशित है ..
पुनश्चः  उपरोक्त वर्णन के साथ प्रस्तुत है ...

लोकतंत्र का गान....
नित नये नारे उद्घोष ,अपेक्षाये लोकतंत्र का गान....

नित नये नारे ,नए उदघोष ,नव आंकाँछाएँ
हो नही सकती कभी पूरी
 ये तुमसे क्या छिपाएँ  ।

देश का इतना बड़ा,कानून है
भूख पर जिसका असर ,होता नहीं
मूल्य बदले दलदलो ने भी
कांति जैसे जलजलों का
अब असर होगा नहीं
और नुस्खे आजमायें ।
ये तुमसे क्या छिपाएँ।

अरगनी खाली ,तबेले बुझ रहे हैं
छातियों में उग आये स्वप्न
जंगलों से जल रहे है्
तानकर ही मुट्ठियों को क्या करेगें
ध्वज पताकाएँ उठाने मै मरेगें
तालियाँ भी इस हथेली से नहीं बजती
ढोल कैसे बजाएँ।
तुमसे क्या छिपाएँ।
   
कमलेश कुमार दीवान
writer
kamleshkumardiwan.youtube.com


बुधवार, 1 अप्रैल 2015

दुनियाँ के युवाओ प्रतिकार करना सीखो....

दुनियाँ के युवाओ प्रतिकार करना सीखो
१..यह दुनियां उतावले लोगो के लिये नये संसार रचने के लिये भी समर्थ तो है किन्तु धैर्य को अपने अंतस मे समाहित रखने बाले लोग विजयी होते है ।अपने अंदर प्रतिकार की शक्ति को जागृत रखे और धीरे धीरे चलते रहें।
प्राईवेट सेक्टर मे भी कार्य से आपकी ग्रेडिग नही हो रही है वहाँ एक नये तोर तरीको का वासिज्म है ।निजी कम्पनियो मे बेहतर  काम करने वाले अनेक लोग उनसे कम जानकारो से मात खा जाते है।दुखी होने की आवश्यकता नही है ।आपको यह करना है कि अधिकारी व्दारा माँगे जाने पर ही सुझाव दे और कार्य के लिये अपने अधिकारी  को बेहतर आईडिया देते समय यह ध्यान रखा जावे कि क्या वह स्वीकार करेगे ?याद रखे आपके सुझाव पर काम करने वाले लोगो को विदेश भेजा जाता है ,आप जहाँ के तहा बने रहते हो । युवाओ को संगठित होकर अपने विरूध्द चल रहे पेशेवर षड़यँत्रो के खिलाफ आवाज उठाना ही होगा । २९मार्च २०१५

३..३०मार्च २०१५
मेरे बच्चो खतरे कही दूर से नहीं आते वह हमारे आसपास ही मँडराते है ,उनसे बचकर अपनी प्रगति करना ही कामयावी है

मै समझता हूँ कि इतनी समझ उम्र के साथ हर एक मै आ जानी चाहिये ।

शनिवार, 21 मार्च 2015

बच्चे ......थक चुके है बच्चे


हमारे देश मे प्राथमिक से हायर सेकेन्ड्री तक सामान्य शिक्षा से लेकर विशेष विषयो के पाठ्यक्रम तक बच्चो की तरफ खिसकाने की कोशिश निरन्तर होती रहती है नैतिक शिक्षा , किशोर शिक्षा , पर्यावरण शिक्षा ,आपदा प्रबँधन तब कभी अध्यामिक शिक्षा, कृषि एवम् कानून की पढ़ाई भी तो लोकताँत्रिक एवम् कृषिप्रधान देश के लिये जरूरी है ।
शिक्षा के बारे मे  बच्चो पर सर्वाधिक बोझ परिवार की अपेक्षाओं का भी है ,जिसे कविता के माध्यम से रेखाँकित करने का प्रयास किया है कृपया देखें.
बच्चे
थक चुके है बच्चे
पढ़ते पढ़ते अनार आम
A B C D
अलिफ वे
पक चुके है शिक्षक
पढ़ाते पढ़ाते
अनार आम A B C D अलिफ वे ।
नही थके है निर्देश दाता
बच्चो को ये पढ़ाये
बच्चो को येसे पढ़ाये
हाथ धुलवाये
बच्चे भूखें है
उन्हे खाना खिलाये ,पानी पिलाये
बच्चे थक रहे हैं
आगामी दिनो मे
शौच कराने
पैर दवाने आदि आदि के
 निर्दैश भी  आयेगे
खाना खिलाने ,पानी भरने, पिलाने
बर्तन माँजकर उन्हे सहेजकर रखने
सब कुछ दूसरे दिन के लिये तैयार करने
रपट तैयार कर भेजने
कितना बढ़ गया है काम का बोझ
बच्चो पर किताबो के बोझ कि चर्चा
शिक्षको की लदान पर कोई बहस मुबाहिसे न हो
तब स्कुल कैसे चलेगें ।
कमलेश कुमार दीवान
07मार्च 2014

बुधवार, 18 मार्च 2015

बादर मत बरसो


मौसम खराब है बर्फवारी ओले और बरसात का आलम मार्च माह मे बरसात जैसा है फसले तबाह हो गयी है आवाम अपने भविष्य को लेकर चिंतित है बादलो के लिये यह  अनुरोध गीत भेज रहा हूँ प्रार्थना करे की पृ्थ्वी पर जीवन की सृष्टि आसान बनाये ,सादर समर्पित है ।

बादर मत बरसो

बादर मत बरसो
दिन रेन
बादर मत बरसो
दिन रेन ।
जिन अखियों मे
नीर न आये
उन्ही बसत है चैन
बादर मत बरसो
दिन रेन ।
ऊँचे पर्वत
पेड़ विराजत
काटे से मर जेहें
बहती नदियाँ
निर्मल रहती
रूकी थकी बेचेन
बादर मत बरसो
दिन रेन

कमलेश कुमार दीवान
4  मार्च 2015

मंगलवार, 3 मार्च 2015

नए लोग हैं


भारत मे लोकतंत्र है सत्ता प्रतिष्ठानो पर काबिज होते ही लोग नये जुमले गढ़ते है
नवीन विचार फेकते है नये प्रभाव उत्पन्न करने की कोशिश करते है जद्दोजहद मे शायद उनके प्रभाव से उत्पन्न होने वाली परेशानियो के बारे मे विचार नहीं कर पाते है यह कविता एक समझाईश भर है कृपया पढ़े ...

नए लोग है

नए लोग हैं
नव विचार तो देगें ही
चाहे फिर जितने सबाल हो।
नए लोग है ।
देश काल का ध्यान न आये
ऐसा भी क्यों
बहकी हुई हवा भरमाये
ऐसा ही क्यों
नये बोध है
नये शोध है
नये लोभ है
नई पौध है
शिष्टाचार निबाहगें ही
चाहे फिर सबसे बँचित हो
नये लोग है ।
नव विचार तो देगें ही
चाहे फिर जितने सबाल हों।

 कितना मुश्किल लोकतंत्र है
पाँच वरष ढेरो प्रपँच है
थोड़ा सहन करो  तब देखो
सुख सुविधाये अनंत है
नये दौर है
नव करार तो होगे ही
चाहे फिर
जितने मलाल हो ।
नये लोग है
नव विचार तो देगें ही
चाहे फिर जितने सबाल हो ।

कमलेश कुमार दीवान
लेखक
दिनाँक..3मार्च 2015
mob.no.9425642458
email..kamleshkumardiwan@gmail.com

शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

बसंत के बारे मे

बसंत शुरूआत होती है जीवन के प्रस्फुटन की ।बसंत नव जीवन के  आभास  की प्रतिष्ठा है ।
बसंत त्याग और बलिदान की पराकाष्ठा है ।बसंत एक अनुभव है सुख देने दुख सहन करने का ।
बसंत के बारे मै यह कहा जा सकता है कि बस.. अंत ....पर यह एक जज्वात भर है ।
बसंतपंचमी के अवसर पर शूभकामनाये । और यह गीत प्रस्तुत है ..
बसंत के बारे मे

ऐसे बसंत आये।
ऐसे बसंत आये।

मौसम हो खुशुबगार
और पँछी चहचहाये ।
नदिया बहे और खेतों मे
धानी चुनर लहराये।

ऐसे बसंत आये ।
ऐसे बसंत आये ।
 
 कमलेश कुमार दीवान
        27/11/09

गुरुवार, 22 जनवरी 2015

मै चलता रहा

मै चलता रहा

मै चलता रहा अजनवी रास्तो से
गजब क्या हुआ ,मेरी मंजिल ही आई

मेरा वास्ता रहनुमाई से ही था
करूँ क्या वयाँ जगहँसाई से ही था
कदम दर कदम लोग मिलते गये है
बना कारबाँ ही अजब हादसो से।

मै चलता रहा अजनबी रास्तो से ...।

मुझे भी तलाशा गया हाशियों मे
अकेला खड़ा रह गया साथियों मे
हर एक खाने मे टुकड़े टुकड़े हुआ हूँ
मिला कतरा कतरा मै उन बस्तियों मै।

मै चलता रहा अजनबी रास्तो से ...।

कमलेश कुमार दीवान
अप्रेल १९९१
mob.no.9425642458
email...kamleshkumardiwan@gmail.com

गुरुवार, 1 जनवरी 2015

नव वर्ष के शुभ अवसर पर मेरा यह गीत आप सभी को सादर समर्पित है

नया वर्ष शुभ हो ।

नया वर्ष हो, नये हर्ष हों
हो नई खुशी, नवोत्कर्ष हो

नई सुबह हो,नयी शाम हो
नई मजिंलें,नए मुकाम हो

नए लक्ष्य हों ,नए हौसले
हो नई दिशा, नए काफिले

नए चाँद तारे ..ओ आफताव
नई दृष्टियाँ ,नयी हो किताब

नये मिजाज हो, नये ख्वाब हों
नई हो नदी...    नयी नाव हो

नये वास्ते नए हैं सफर
नये अर्थ जिनकी तलाश हो

नई भोर की सौगात हो .
नई भोर की सौगात हो ।

शुभमंगलकामनाओं सहित।

        कमलेश कुमार दीवान
             लेखक
mob.no.9425642458
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बुधवार, 31 दिसंबर 2014

New Year poems

              नव वर्ष 2015

1..आओ नव वर्ष
    तुम्हारा बँदन ।

   खुश हो सब
   सुखी रहे
  फिर हो अभिनंदन ।
काल की कृपा होगी
सारे सुख पायेंगे
पीकर हम हालाहल
अमृत बरसाएंगें
धरती गूड़ धानी दे
पर्वतो पर पैड़ रहे
रेलो मे सड़को पर
हम कसबकी खेर रहे
माँग मे सिदुँर रहे
 भाल पर तिलक चंदन
आओ नव वर्ष
 हम करे वँदन

2..नव वर्ष

सुख बिखर सिमटते रहे
तिमिर घन
घटते बढ़ते रहें
प्रण टूटे ,
मौन और विस्तृत
स्वीकारे उत्कर्ष ,
नये आये है,वर्ष ।
नव वर्ष पर शुभकामनाये ,सूखी और समृध्दशाली रहे
शुभ मँगलकामनाओ सहित  सादर समर्पित है।
    कमलेश कुमार दीवान
mob.no.9425642458
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बुधवार, 22 अक्टूबर 2014

दीपावली के पावन पर्व

दीपावली के पावन पर्व
दीपावली के पावन पर्व पर शूभकामनाये ।हमारी सृष्टि मे चहुँ और अँधकार है जिसे सूरज का प्रकाश उजालो से भरता है ।ज्योति पर्व समस्त चराचर मे व्याप्त अँधकार को उजियारे मे तब्दील करने का पर्व है ।हम सब सुखी रहे ,समृध्दशाली बने और जीवन पथ पर सभी को साथ लेकर मँजिल की और कदम बढाते चले । मंगलकामनाये  के साथ यह  स्वरचित कावय पंक्तियाँ सादर समर्पित है ....

दीप की तरह जले
सीप की तरह ढले
अनंत से प्रकाश पा
बढे चले ,बढे चले
मँजिले तो आयेंगी
मँजिले तो आयेंगी ।

ये पथ रहे प्रकाश मे
उल्लास हो आभास मे
आनंद का एहसास हो
दीप के आकाश मे
इन पर्वतो के पार भी
कोई न कोई देश है
अँधेरो के नकाब मे
कोई न कोई वेष है
चढे चलो चढे चलो
बढे चलो बढे चलो ।

कमलेश कुमार दीवान (लेखक)
होशंगाबाद म.प्र
22oct 2014
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रविवार, 22 जून 2014

पतझड़ के लिये गीत

पतझड़ के लिये गीत

अब फूले है,पलाश
सरसो भर आई है
कोयलियाँ कुहक रही
बादलिया छाई है ।

आम्र बौर लद आये
झर रहे है नीम पात
पछुआ पुरवाई भी
बहती है साथ साथ
मौसम की आहट है
पतझड़ फिर आई है।

वन प्रांतर सुलग रहे
झुलस  रहे गात गात
महुये के पेड़ों मे
आई तरूणाई है ।
अब जिनको है तलाश
वर्षो की पायी  है ।

अब फूले है फलाश
सरसों भर आई है।

कमलेश कुमार दीवान
9/03/2010



मंगलवार, 3 जून 2014

बच्चो तुम्हे

बच्चो तुम्हे

बच्चो तुम्हे
आकाश की जरुरत थी
हम तुम्हे भगदड़ ,कोलाहल और
दे रहे है भीड़ भरी सड़के
सब कुछ बदल दिया है
विग्यान ने
क्रमबध्द ग्यान से हमारे आसपास
सन्नाटे गहरा गये है
ऐसे वियावान मै
हमारे साथ सिर्फ ईश्वर हो सकता है
आदमी नही ।

कमलेश कुमार दीवान
28.10.1999

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शुक्रवार, 2 मई 2014

अखबारो मे आम हुये है


अखबारो मे

अखबारो मे आम हुये है 
खास खास चरचे 
खास खास चरचे ।

दीवारो पर लिखे इबारत 
अबकी बारी इनकी हैं
ढोल मढ़ैया ,चौसर चंका 
सारी बाजी इनकी है 
हरकारो के दाम हुये है
सड़को पर पर्चे ।
खास खास चरचे ।

कीमत बढ़ी आसमानो सी 
सुलतानो के होश उड़े
दरबारी को नींद न आई 
रहे ऊँघते खड़े खड़े 
लोकतंत्र मे आई खराबी 
फिर जनता पर दोष मढ़े
द्वार द्वार बदनाम  हुये है 
दौलत और खर्चे ।
खास  खास चरचे ।

अखबारो मे आम हुये है
खास खास चरचे 
खास खास चरचे ।

कमलेश कुमार दीवान 
दिनाँक २७ । १०। १९९८