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शनिवार, 23 सितंबर 2017

समय जुलाहे बता.....गीत

“समय जुलाहे बता”
समय जुलाहे बता
आज का ताना बाना
क्या है?
कौन किसे सम्मान करेगा
गरियागा कौन
कौन लिखेगा शब्द वाण से
कौन रहेगा मौन
समय जुलाहे बता
आज का रोना गाना
क्या है?
समय जुलाहे बता
आज का ताना बाना
क्या है?
सूरज तो निकला है
पर वह
लाल नहीं था
घूम गई थी धरा
मगर वह
काल नहीं था
ध्वज दिख रहे सभी
पीले ही पीले
मन लहराए कब
ऐसा हाल नहीं था
समय जुलाहे बता
आज का खोना पाना
क्या है?
समय जुलाहे बता
आज का ताना बाना
क्या है?
कमलेश कुमार दीवान
लैखक होशंगाबाद म.प्र.
10/9/17

रविवार, 3 सितंबर 2017

तुमसे क्या छिपायें

"आजादी के बाद मेरे देश मे संसदीय लोकतंत्र और बहुत बाद मे स्थानीय स्वशासन एवं पंचायती राज प्रणाली
अपनाई गई पर इस प्रकार की दोहरी तिहरी शासन प्रशासन प्रणाली से भी आजादी के समय स्वतंत्रता सेनानियो के सपनो को पूर्ण नही कर पाये है देश की अर्थव्यवस्था पर बौझ बढ़ा लोकतात्रिक संस्थाऐ एक दूसरे से पृथक कर दि गई आम चुनाव बहुत महंगे हुये सहिष्णुता भाईचारा सब कुछ तिरोहित हो गया हम नेतृत्व से बहुत आशा करते है किन्तू वह प्रशासनिक व्यवस्थाओ मे कोई सुधार नही होने के कारण मजबूर हो गये है नेतृत्व से जन अपेक्षाओं के संदर्भ मे यह गीत  प्रस्तूत है ...

लोकतंत्र का नया गान ......

 "तुमसे क्या छिपायें"

नित नये नारे ,नए उदघोष ,नव आंकाँछाएँ
हो नही सकती कभी पूरी
 ये तुमसे क्या छिपाएँ  ।

देश का इतना बड़ा,कानून है
भूख पर जिसका असर ,होता नहीं
मूल्य बदले दलदलो ने भी
क्राँति जैसे जलजलों का
अब असर होगा नहीं
और नुस्खे आजमायें ।
ये तुमसे क्या छिपाएँ।

अरगनी खाली ,तबेले बुझ रहे हैं
छातियों में उग आये स्वप्न सारे
जंगलों से जल रहे है्
तानकर ही मुट्ठियों को क्या करेगें
ध्वज पताकाएँ उठाने मे मरेगें
तालियाँ भी इस हथेली से नहीं बजती
ढोल कैसे बजाएँ।
तुमसे क्या छिपाएँ।
   
कमलेश कुमार दीवान
लेखक
होशंगाबाद म.प्र.
kamleshkumardiwan.youtube.com

शनिवार, 1 जुलाई 2017

हेलो डाक्टर

#हेलो डाक्टर #

                ..           “ कमलेश कुमार दीवान”
क्या आप जानते है कि आपके मरीज पर्याप्त दवाई खाने के बाद भी स्वस्थ नहीं हो पा रहें हैं?मुझे लगता है कि शायद आप हाँ  नहीं कहेंगे।हमें विश्वास करना होगा कि हमारे देश के 99%व्यक्ति बीमार होने पर कई पेथी से संबधित नाना प्रकार की दवाईयाँ अपने आप सीधे दुकानों से खरीदकर सेवन करतें हैं इसमें इलाज करने वाले के साथ विज्ञापन भी सहभागी हैं।इसका एक अर्थ यह भी है कि एलोपैथिक चिकित्सा से कहीं अधिक विश्वास आयुर्वेद ,होम्योपैथी,यूनानी चिकित्सा पद्धतियों के साथ घरेलू नुस्ख मे है ।कभी कभी डाक्टर यह कहते हुए भी देखें जाते हैं कि “वह दवाई मत छोड़ना यह भी चलने दो “गजब संस्कार हैं।इस बहाने कुछ बातें जरूर साफ होना चाहिए……
1..मरीज की मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग जरूर करें ताकि आपको पता चले कि नाश्ते के पहले या बाद के लिये लिखी गई दवाई को सेवन करने हेतु उसकी नाश्ता करने की प्रवृत्ति या परम्परा है कि नहीं ?
2...अपनी तरफ से ही सभी प्रकार की जांच करवाएँ तदुपरांत ही दवा लिखें ।उसके पूर्व सामान्य दवाएं दे ताकि राहत मिले पर पैथोलॉजी जाँच प्रभावित न हो।
3...मरीजों को सुनें,देखें कि वह बीमारी से पृथक क्या बताना चाहता है ।
4...बगैर गहन जांच के दवाएं न लिखें।
धन्यवाद।
कमलेश कुमार दीवान
होशंगाबाद
30/6/177

सोमवार, 5 जून 2017

पहाड़ हँस रहें हैं

आज 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस है ।हम सभी पर्यावरण विनाश को लेकर चिंतित हैं। यह दिवस आने पर हम पेड़ लगाते आ रहे हैं पर कहाँ पेड़ पौधो का रोपड़ किया जाये यह नहीं सोचते हैं।हमारे देश मे होने वाली मानसूनी वर्षा पहाड़ों कि ऊँचाईयों के अनुसार होती है यदि हम पहाड़ो से पेड़ काटते हैं तब ऊँचाई एकदम लगभग तीस मीटर तक कम हो जाती है जिससे न केवल वर्षा वरन  भूमिगत  जल भी प्रभावित होता है । मेरी यह कविता एक आव्हन है पढ़ियेगा...


पहाड़ हँस रहें हैं
                            कमलेश कुमार दीवान

दोस्तो ये पहाड़ हम पर
हँस रहे हैं
अट्टहास कर रही है हवायें
उमड़ते घुमड़ते काले मेघ
कहर बरपा रहे हैं
और तुम........
अब भी सड़को ,नदियों के किनारें
घर आँगन चौपाल चौराहों पर
पेड़ लगा रहे हो
जानते हो नरबाई की आग ने
जला दिये है लाखों पेड़
मानना ही पड़ेगा कि पहाड़ो की हरितिमा
उतार फेकी है इस सदी ने
फिर भी तुम
पर्यावरण के गीत गा रहे हो
दोस्तो
नदियों से पहले
पहाड़ो को बचाओ
भुरभुरी रेत की ढेरी बनती
चट्टानो को बचाओं
ये पहाड़ ही हैं जिनके बीच से बहती नर्मदा
भूमिगत स्त्रोतों से रिसकर आ रहे जल से
सदानीरा जीवनदायनी है
पहाड़ पर पेड़ होंगें तब
जल और जीवन के साथ
हमारा आज और कल भी होगा
पहाड़ो को बचाओ दोस्तो
नदियों से पहले पहाड़ों और पेड़ो के गीत गाओं
यात्रा करो उन वियावानो की
जहाँ जंगलो को साफ कर दिया गया है
देखो वहाँ से कभि न दिखाई देने वाला आसमान
साफ कह रहा है कि
पेड़ पौधौ की जरूरत यहाँ हैं
उन खेतो और किनारो मे नहीं
इसलिये यहाँ आओ
पेड़ उगाओ, लगाओ और कल के लिये जल के साथ
कलकल बहती नदियाँ हवा पानी और सूख पाओ
दोस्तो सही जगह पेड़ लगाओ .
पेड़ो को लगाने की सही जगह पहाड़ ही हैं
     
कमलेश कुमार दीवान
30/5/2017
लेखक होशंगाबाद    

मंगलवार, 16 मई 2017

दादा जी संक्षेप मे

भारतीय किसानो की दशा पर वर्ष १९८२ मे लिखा यह गीत आज भी प्रासांगिक है ।
पहले महाजन थे आज सरकारी एवम्  निजी बैंक और उनके एजेंट है लोग समझते है कि भारत
१९४७ मे आजाद हो गया है पर हमारी आखौ के सामने वही मंजर है वही गिड़गिड़ाहट है ,फसले खराब होने
पर अन्नदाता किसान राजनीति के कदमो मे गिर रहा है अर्थात् हमने आजादी से क्या पाया है बड़े बड़ै बाजारो का तिलिस्म
समपन्नता के सपने हमे जीने नही देते है ।मेरा यह गीत एक बिचार है जो परिवर्तन की दरकार लिये है .....

दादा जी संक्षेप मे

सारी जिनगी
बीत गई है
दादा जी आक्षेप मे
और सुनाओ
बड़ी कहानी
दादा जी संक्षेप मे ।

सच बतलाओ
उसे कहाँ पर
दफनाया था
पतिता रोती रही
न उसका
पति आया था
दूर देखती रही
उसांसे भर भर कर
कैसे जीती रही
आज तक
मर मर कर
पिता आयेंगें
बिटियाँ तेरे
बाबाजी के वेष मे
दादा जी संक्षेप मे ।

जब रमुआ के बैल
हाँक ले गये महाजन
गिर गिर गई पैर पर
सुखिया बाई अभागन
छुड़ा रही थी हाथ
और वह खींच रहा था
तेरा साथी कल्लू कैसा
चीख रहा था
लाज लुटी घरबार रहन
हो गये एक आदेश मे
और सुनाओ बड़ी कहानी
दादा जी संक्षेप मे ।

कमलेश कुमार दीवान
१८ जून १९८२

   

रविवार, 30 अक्टूबर 2016

दीपावली 2016 पर विचार शुभकामनायें एवम् गीत .."आज हम"

दीपावली 2016 पर  विचार शुभकामनायें एवम् गीत .."आज हम"

सृष्टि मे अँधेरे का साम्राज्य है।पृथ्वी पर पृथ्वी की छाया ही दुनियाँ मे रात का अँधेरा है जिसे एक सूरज उजाले से भर देता है ।मनूष्य भी अपने अतीत की छाया से भविष्य के अंधेरों का सृजन कर डूबने लगता है तब हमारे अंर्तमन से वर्तमान के उजास प्रस्फुटित होकर पथ को आलोकित करते हैं। आओ हम सब एक दीप अपने अंर्तमन मे व्याप्त अंधेरों को दूर करने हेतु जलायें अपने पथ पर आगे बढ़े ,बढ़ते रहें । गीत है .......

""आज हम ""
आओ अंर्तमन के
दीप प्रज्जवलित करे ,आज हम
पथ पथ अँधीयारे फैले हैं
दिशा दिशा भ्रम हैं
सूरज चाँद सितारे सब है
पर उजास कम हैं
थके पके मन, डग मग पग है
भूले राह चले हम ।
आओ अंर्तमन के
दीप प्रज्जवलित करे, आज हम ।

दीपावली के पावन पर्व पर शुभकामनायें ।सभी सुख समृध्दि से परिपूर्ण रहें ।

कमलेश कुमार दीवान
30/10/2016

 

सोमवार, 19 सितंबर 2016

एक गीत...उड़ना चाहता हूँ

एक गीत...उड़ना चाहता हूँ

मै परो को तौलकर
खूब फैलाकर ही
उड़ना चाहता हूँ ।
जानता हूँ यह
वही आकाश है
जिसने धरा को
जन्म देकर
फिर घुमाया है ,
हवाओं से मेघ ला
वृष्टि कर
हरित आकाश ओढ़ाया है
देखने ,सुनने, समझने
और सव आत्मसात् करने
मै घरों को छोड़कर
खूब चलना चाहता हूँ ।
मै परों को तौलकर
खुब फैलाकर ही
उड़ना चाहता हूँ ।

कमलेश कुमार दीवान
23/07/15

शनिवार, 4 जून 2016

बच्चो तुम सब खुश रहो

"बच्चो तुम सब खुश रहो "
                      *कमलेश कुमार दीवान*
 बच्चो ..तुम सभी खुश रहो
सुख से अपना जीवन बिताओ
पर आने वाले दुःखों को भी पहचानो
दुःख जो अपनो से बिछुड़ने और
अपनाये हुये दूसरो से
मिलने वाले  संताप के बीच मे होते हैं
दुःख जो सपनो को पुरा होने और
उनसे अंकुरित हुये परिताप के मध्य झुलते है
अर्थात् दुःख जो दिखाई देते है
चहूँ ओर
संसार मे जीवन मे
पेड़,नदी ,पर्वतऔर आकाश मे
उन सबके बीच भी
खुश होना सीखो मेरे बच्चो
मेरे बच्चो
तुम सभी खुश रहो ,
बच्चो ...जो दुःख है
जो पल क्लाँत करते है
जो बिचार मलिनता देते है
वह सब मुझे दे दो
मे थोड़ा और
मुस्कुराना चाहता हूँ
तुम सब को खूश देखकर
मे कुछ और रमना चाहता हूँ
ये संसार रूपी नदी
शूरू होकर, बहती रहती है निरंतर...
जो तुमने बनाई है  
वे कागज की नावे ही
पार उतारती चली जायेगी अनंत तक
यह सृष्टि तुम्हारे सपनो के लिये है
यह आकाश उड़ान भरने के लिये है
बच्चो....तुम सब खुश रहो
आनंद से परिपूर्ण रहो
दुःख संताप विचार मलिनता सब
मुझे दे दो मेरे बच्चो
समय के साथ चलते हुये
मे भी उन्ही रास्तों से
कदमताल करना चाहता हूँ
मेरे बच्चो .......
तुम सभी खूश रहो
आनंद से जीवन बिताओं
पर आने बाले दुःखो को भी पहचानो ।

कमलेश कुमार दीवान
लेखक
23/05/2016
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सोमवार, 11 अप्रैल 2016

लोकगीत

॥लोकगीत॥ १
थोड़ा सा समझ के

थोड़ा सा समझ के
दबइयो बटन भैया
दबइयो बटन बहना
जा मे से.......
लोकतंत्र आयेगो ।
सबके मन भायेगो।
हम सबको निबाहेगो।

जाति पाँति धर्माधरम
बात करत बड़ी बड़ी
बाँटे है देश और
घात करत घड़ी घड़ी
जीत के जो
फूलो न समायेगो ।

थोड़ा सा समझ के,
दबइयो बटन भैया
सबके मन भायेगो।
ओ भैया ,ओ बहना,
जा मे से लोकतंत्र आयेगो ।

थोड़ा सा समझ के
दबइयो बटन भैया
दबइयो बटन बहना
जा मे से लोकतंत्र आयेगो
सबके मन भायेगो
हम सबको निबाहगो ।

कमलेश कुमार दीवान
१९ अप्रेल २००९ 

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

अच्छा होगा ..मानव जीवन के संबंध मे एक गीत

जिन्दगी के बारे मे हम बहुत चिंतिंत रहते है सोचते है क्या होगा कैसे बीतेगी इस संदर्भ मे मेरा यह गीत प्रस्तुत है गुनगुनाये तो अच्छा लगेगा ....

💐अच्छा होगा💐  ..मानव जीवन के संबंध मे एक गीत

जिन्दगी ऐसी निकल जाये
तो अच्छा होगा ।
किसी से खुशियाँ मिले
और कोई दुआयें दे
जिन्दगी ऐसी सँभल जाये
तो अच्छा होगा ।

कभी दुख भी मिले
तो हसरते भी पूरी हो
दिल के अरमान
संजोने भी तो जरूरी हो
भीगे कोरे मेरी आँखो की
तुम्हारी नम हो
निकल आये अगर आँसू
तब तुम्हारे गम हो

खुशनुमा भोर हो
दोपहरी हो
साँझ भी ऐसी ही ढल जाये
तो अच्छा होगा
जिन्दगी ऐसी ही बन जाये
तो अच्छा होगा ।
कमलेश कुमार दीवान
22/3/2016
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रविवार, 20 मार्च 2016

चिड़ियाँ रानी आना"...बच्चों के लिये गीत


"चिड़ियाँ रानी आना"...बच्चों के लिये गीत
आज विश्व गौरया दिवस है(20 मार्च)अपनी नन्ही सी प्यारी  बेटियो के लिये यह गीत लिखा और उन्हे सुनाया करता था जिससे वे खूश हो जाती थी ।छप्पर छानी तो सब गाँव मे छूट से गये किन्तु शहर के घर मे आज भी चिड़ियाये घौंसले बनाती है उनके बच्चौ की चहचहाहट से घर भरा रहता है जिससे बच्चियों की याद निरंतर बनी हुई है ।वे बाहर है कभी कहती है कि पापा चिड़िया रानी वाला गीत सुनाओं  तब समूचा बचपन एक साथ जेहन मे समा जाता है जिसे परे ढकेलना बहुत मुश्किल हो जाता है ।मुझे लगता है कि बेटीयों और चिड़ियों मे कोई अधिक फर्क नही है काश उनके भी पंख होते आकाश मे वे भी ऊँची उड़ान भर सकती पर कोई बात नहीं हवाई जहाज तो है जिनमे बचपन से काँधो पर सवार रहती बेटियाँ  उड़ रही हैं समूची पृथ्वी  और आकाश उसके साथ हैं । मेरा यह गीत विश्व गौरेया दिवस पर विश्व भर की बेटियों को समर्पित है .....

चिड़ियाँ रानी

चिड़िया रानी आना
धूल मत नहाना
छोटी सी कटोरी मे
दाना रखा है ।

छोटे छोटे पँख तेरे
सारा है आकाश
दूर दूर जाती उड़ के
आती पास पास

मेरी छप्पर छानी मे
घौंसला बनाना
चिड़ियाँ रानी आना
चिड़िया रानी आना
   कमलेश कुमार दीवान
होशंगाबाद म.प्र
3जुलाई 1993

गुरुवार, 17 मार्च 2016

समय के साथ चलना

मै निवेदन के साथ यह गीत प्रस्तूत कर रहा हूँ  मित्रो सदस्यौ से अनुरौध है कि वे पढ़े और खुले मन से प्रतिक्रिया देवे ।
17/03/2016

समय के साथ चलना

हम समय के साथ
चलना चाहते है
पर समय तो हो ।

निकल आये दूर
पथ विस्मृत हुये है
क्या करे अब सुझती
मंजिल नहीं है
भीड़ अट्टहास करती
गुम हुई सड़के पुरानी
शहर को जैसे बताती थी
दादी नानी की कहानी
बहुत बदला है
ठहरना चाहते है
पर समय तो हो।

कमलेश कुमार दीवान
30/7/2015 

गुरुवार, 3 मार्च 2016

पात पात झर रहे है ... गीत

पात  पात झर रहे है

पात पात झर रहे है
महके महके गात गात
रिश्तो मे अनबन है
फिर भी थोड़ी समात ।
वन उपवन बहके है
महुये की सुगंध से
फागुन के रंगो से
बांसती अनूबँध से

थोड़ी सी आस पर
बहकी सी कायनात
रिश्तो मे अनबन है
फिर भी थोड़ी समात ।

कमलेश कुमार दीवान
6 मार्च 2015
kamleshkumardiwan.youtube.com

शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

क्या लिखें .... क्या लिखें गीत

क्या लिखें
क्या लिखें गीत
क्यों गायें ,
गुनगुनाये क्या
जो पास था वो
चला गया सारा ।
हम जब आजाद थे
गुलामी में
लड़ गये
बेहतरी के लिये
अब ये आजादी
कहाँ हैं यारो
कि मुखाफलत हो
असलियत के लिये
क्या लिखे जीत
क्यों मनाये ,
फहरायें क्या ?
जो पास था
छला गया सारा ।
क्या लिखे गीत
क्यों गाये
गुनगुनाये क्या
जो पास था
चला गया सारा ।

कमलेश कुमार दीवान
लेखक
18/02/2016

रविवार, 27 दिसंबर 2015

मेरे बच्चो ......एक कविता

मेरे बच्चो ......एक कविता

मेरे बच्चो
कुछ न दे सका तुम्हे ऐसा
जिस पर गौरवान्वित हो सकुँ
ये उदासी, नीरसता , और एकाँकीपन
मेरे ही कारण है
तुम्हारी भावनायें और
संसार की भौतिक चीजों के प्रति आकर्षण
मेरे ही कारण है
मैने अब मान लिया है कि
सारे दोष मुझमे ही है
किन्तु तुम सब भी तो थे
मेरे साथ बड़े होते हुये
देखों अपना छोटा आँगन
सीमित जगह
जहाँ खेले कुदे सुरक्षित रहे
काँधो पर सेर करते करते
हवाई जहाज से आकाश छूँ रहे हो
पर यह सही है
मैरे बच्चो
कुछ न दे सका हूँ तुम्हे ऐसा
जिस पर तुम्हे गर्व हो
अब तुम खूद हासिल करो
अच्छे दोस्त
जो नाटक के पात्र न हो
पता लगाओं  ,बनाओं
उम्दा घर जो रेतं के घरोदों की मानिंद भुर भूरे न हो
मै मेरा घर छौटा आँगन और
मेरी भागम भाग भरी नौकरी की दुनियाँ
कुछ न कूछ तो देती रही है तुम्हे
पर वह कुछ नही जो
सब चाहते है
मेरे बच्चो अब तुम सीख लो ।

कमलेश कुमार दीवान
27/12/2015

शनिवार, 24 अक्टूबर 2015

कुछ लोग

दुनियां मे कुछ लोगो  समस्त अधिकारो कानूनो और शीर्ष पदो पर काबिज होकर आबाम् को संचालित कर सब कुछ अपनी मूट्ठि मे कैद रखने की कवायद करते रहे हैं जो स्वतँत्रता और लोकतँत्र के इस दौर मे   गैरजरूरी और अनूचित है जिसके भयावह परिणाम हमारे सामने आ रहे है ।मेरी यह कविता दिशा संवाद के बुलेटि मे प्रकाशित है अनुरीध है आप भी  पढ़े और इस दौर को समझें जिसकी पृष्टभुमि मे बीता हुआ वह समय है जिसमे अमेरिका मे  क्लिंटन और सोवियत रूस मे येल्तसिन थे।
**सबके सापेक्ष मे कुछ लोग**

कुछ लोग ही तय कर रहे हैं
बहुत कुछ इस दुनियाँ के लिये
कुछ लोगो के कानो मे पीतल के टैग लगाये गये है
(क्योकि वे प्रगतिशील हैं)
कूछ लोगौ ने छाती पर गुदने गुदवा लिये है
(क्योंकि वे अपने को परम्परावादी मानते है )
कुछ लोग पूछ रहे है कि भाई तुम किस तरफ हो
कुछ लोग बाकी लोगो के लिये रबर की सील लिये दौड़ रहे हैं
क्योकि इस सदी के अंत अंत तक
तय कर देना चाहते है कि वे इस तरफ हैं या उस ओर
सच मानो आदमी सिध्द करने के खाँचे
अब नहीं बचे हैं उनके पास
जो पहले आदमी थे
आज हम तुम बैंको व्दारा ऋण मे दिये गये रेबड़ के
बैल भैस गाय भेड़ बकरी और मेमने हैं
आधुनिक बाजार मे अपने अपने निशानों से
बिकते चले जाते है सभी के सभी
कुछ लोग समूची दुनियाँ पर
आई.एस. आई.या एगमार्क जैसे निशान बनाना चाहते है
क्योकि उन्ही के पास तो तपती सलाखे हैं
गर्म करते रहने की धमनभट्टियाँ भी ।
देखो येल्त्सिन के पास लाल बटन है और
क्लिन्टन लोकतंत्र की  चावी घुमा रहे हैं
हमारे देश मे एक ही प्रधान मंत्री है
पर लोग देश का फेडरल स्ट्रक्चर समझा रहे है
दौस्तो दुनियाँ कैसी हो?
उसमे कौन कौन हों और कौन कौन नहीं
समाज कैसे चले
औरते कैसी हों ,उसके नाखून कितने बढ़ें,कैसे रंगे जाये
कुछ ही लोग तय कर देना चाहते है
इन कुछ लोगो के सब कुछ तय कर देने से
बाकी सब,कुछ नहीं कर पा रहें है
इसलिये कुछ लोगो के पास कारखाने हैं
जिनमे बनाये जा रहें है स्टाम्प पेड रबर मोहर और टैग
चड्ढी हाफपेंट और टोपी से लेकर लाल कुर्ते तक
सिलने सिलवाने ,पहनने या दूसरो को पहनाने
या सब कुछ को उतार फेंकने का सिलसिला चल निकला है
बिल्लो को फटी कमीज पर चिपकाये रखने
छोटे छोटे सपनो को खूँटी पर टाँगे रखने
या मूँह ढाँपकर सोते रहने से
आदमी और दुनियाँ दोनो ही बदल रही है
लोगो जरा सोचो और मालुम करो कि
हिस्से मे आये जिन्दी जिन्दी नोट
बच्चो का गला फाड़ रहे नारे और देश की छाती मे छेद करते बोट
बूढ्ढो के खँसते खंखारते रहे से क्यो झड़ रहें हैं
दुनियाँ के पास बहुत कूछ है पर
हमारे पास पा सकने लायक कुछ बी नहीं
क्योंकि कुछ ही लोग हैं
जो सभी कुछ तय कर चुके है ।

कमलेश कुमार दीवान
लेखक
होशंगाबाद म.प्र
.kamleshkumardiwan.youtube.com
24/10 /15
 

शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2015

बंजारे तू गीत न गा रे

""बंजारे तू गीत न गा रे""

बंजारे तू गीत न गा रे
बस्ती बस्ती प्यार के
बस्ती बस्ती प्यार के ।।
किसी से तेरी प्रीत नहीं है
कोई तेरा मीत नहीं है
तू तो चलता ही जाता है
मंजिल कभी नहीं पाता हैं
आजा रे तू मीत बना ले
मान और मनुहार से
बँजारे तू गीत न गा रे
बस्ती बस्ती  प्यार के
हो न सके उस यार के
बंजारे तू गीत न गा रे
बस्ती बस्ती प्यार के ।

कमलेश कुमार दीवान
लेखक
18/12/2000
kamleshkumardiwan.youtube.com

शनिवार, 5 सितंबर 2015

पाठशालाओं की तरफ लौटौ मेरे बच्चो ##""शिक्षक दिवस के अवसर पर विद्यार्थियो को पत्र""

""शिक्षक दिवस के अवसर पर विद्यार्थियो को पत्र""
##पाठशालाओं की तरफ लौटौ मेरे बच्चौ ##

मेरे प्रिय विद्यार्थियो
आज शिक्षक दिवस है मेरे जीवन के 29 वर्ष आपके साथ बीत गये।आप सभी ने स्नेह दिया सम्मान दिया ।
 आप सभी ने ज्ञान प्राप्त कर अपनी अपनी दुनियाँ बनाई मेरे लिये स्कूल पाठशालाये या शिक्षण संस्थानईट गारे मिट्टी या सीमेंट काँक्रीट से बनाई गई दीवारे या खपरैल भर नहीं है इनमे अपने समय की जीवंतताँये है। पाठशालायें समय के साथ हमारे आसपाश और हमसे सटकर होने वाली घटनाओं का जीवंत दस्तावेज हैं जो दृश्य संसार मे कभी न कभि व्यक्त होता ही है ।
हमने अभावो मे भी तुम्हे भरपूर ज्ञान दिया। जीवन जीने का ,व्यवहारिक पाठ पढ़ाया ।आपने ,समाज ने भरपूर सम्मान दिया ।सरकारो ने विद्यार्थियो के  हित मे दिये गये  सूझावो को लागू किया हम आभारी हैं। धन्यवाद ।

इस पत्र के माध्यम से  यह कहना चाहते है कि ##विद्यार्थी शिक्षक समाज और लोकतँत्र एक दूसरे के पूरक है ।शिक्षक एक प्लेटफार्म है जहाँ से कक्षा रुपी रेलगाड़ियाँ धड़धड़ाती हुई निकलती जाती है पर उस प्लेटफार्म की खूबसुरती को एकाद विद्यार्थी ही निहारता और  समझ पाता है।##

आपने कभी सोचा है कि समूची दुनियां मे कितावो का अंबार लगा होने के बाद भी शिक्षक क्यो जरूरी है ? मै समझता हूँ कि ज्ञान देने वाली किताबे हमारे दरवाजे पर लगा हुआ एक बड़ा ताला है और शिक्षक उसकी चावी है जब हम चावी का उपयोग करते है तब ज्ञान के कपाट खुलते है ।इसलिये शिक्षक की आवश्यकता है।
मेरे बच्चो अपने स्कूलो की तरफ लौटकर देखो वे अब वैसे नही रहे है ।सामाजिक माहौल पुर्ववत् नही रह गया है। शैक्षिक प्रशासन लोकताँत्रिक नही रह गया है । सब कुछ बदल गया है किन्तु हमारे शिक्षक  कमोवेश परिवर्तनो के बाबजूद वेसे ही अपने दायित्वो का निर्वहन कर रहे है ।

आपकी पाठशालाये अब भोजन शालाओ मे बदल चुकी है ।पढ़ने वाले मेधावी विद्यार्थियौ के स्थान पर कक्षाओं मे पुस्तक न बाँच सकने वाले विद्यार्थी निकल रहे है । हमारे देश मे आजादी लोकतंत्र की बयार मे पाठशालाओं, शिक्षको, विद्यार्थियों का अनिवर्णनीय योगदान है । बच्चौ ने ही तिरँगे फहराये है अपनी पीठ से क्रान्ति की सूचना वाले पोस्टर चिपकाये है ।शिक्षको ने आजादी के गीत गाँव गाँव फैलाये है।  हमारी पाठशालाओं की दरो दीवार और दरीचे इसके मूक  गवाह है ।
 आपको यह पता हो कि अमेरिका के स्व.राष्ट्रपति अब्राहिम लिंकन जी के पत्र की हमारे देश मे चर्चा होती है पर हमारे देश मे शिक्षको के पत्रो और प्रतिवेदनो की कोई बात नही की जाती है यह कितना दुखद है। शिक्षा के भव्य कार्यालय आनन फानन मे खड़े कर दिये जाते है  किन्तू पुर्व मे देशवाशियो व्दारा दान की जमीनो पर एकत्रित धन से निर्मित पाठशालाओ के भवन दरकते हुये जर्जर खड़े रहते है ।आज प्रशासन हर कार्य शिक्षको से ही करवाने की जुगत मे लगा रहता है और  मंशा यह है कि शिक्षको के खुन से बिजली भी बना ली जावे  उनसे मध्याँन्ह भोजन के वर्तन मंजवाये जावें उनसे ही टायलेट साफ करवाये जावे ।मैला धुलवाया जावे ।गंदगी साफ करायी जावे ।

मेरे बच्चो पढ़ लिखकर डाक्टर इंजीनियर वैज्ञानिक और कूशल कारीगर बनो पर ऐसी मशीनो की ईजाद करना जो हमारे कार्य को आसान बनाये जिससे हम समाज और संसार को बदल सके । तुम संहार करने बाले अस्त्र शस्त्रो को तरजीह मत देना मेरा अनुरौध है कि ऐसे ायध निर्मित करना जिससे फेकें गये परमाणु बम का प्रभाव पल भर मे  शून्य हो जावे ।हमे इस संसार से भूख मिटाना है गरीबी दूर करना है तुम ऐसा एँटिना बनाना जिसके व्दारा सीधे सौर्य उर्जा से जीव मात्र भिजन प्राप्त कर अपनी भूख मिटा सके । साफ सफाई के लिये स्वचालित यंत्र बनाना ।मौसम को मनोनुकूल बनाने के लिये वैज्ञानिक कवायद करना जिससे हवा पानी बादल बरसात बेहतर हो । ऐसि तकनीकी विकसित करना जिसके एक कण से अगणित वर्ष बाहन चलता रहे ऐसा रसायन बनाना जो नुकसान पहुँचाते रसायनो को शुध्द कर परिशोधित कर सके ।
मेरे बच्चो चहँऔर ऐसा वातावरण बनाना जिसमे मानव करूणा प्रेम दया ममता जैसे शाश्वत मानवीय मूल्यो से ओत प्रोत रहे ताकि यह दुनियां तन मन से स्वस्थ रहे अर्थात् संरचना करना जिससे यह सृष्टि निरंतरता को प्राप्त हो सके ।

शिक्षक दिवस पर विद्यार्थियो की दुनियाँ प्रकाशवान बने मेरे बच्चो आपके अंदर जितना भी अँधेरा है वह सब मुझे सौपकर उजाले की और बढ़ो यह दुनियाँ तुम्हारा इंतजार कर रही है।
""आप कहीं भी रहो "अपने स्कूलो की तरफ लौटो ,उन्हे देखो उन्हे अपनाओ मेरे बच्चौ आज भी तुम्हे उन पाठशालाओ की जरूरत है जहाँ से पाठ पढ़ते हये दुनियां मे ऊँचाई पर पहुँचे हो।समुन्दर को मापने के पैमाने पाठशालाओ के बगैर कितने कितने अधूरे है ।बच्चौ तुम सुन  रहे हो न "। अब कोई शिक्षक नही बनना चाहता है ।
यह गीत टिमरनी जिला होशँगाबाद म.प्र.मे सन् 1989 ..90 मे  विद्यार्थियो को प्रेरणा हेतु लिखा था ।हमे  आशाओं के सृजन का यह गीत गाते रहना है आपको समर्पित है                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                               आशाओं के सृजन का गीत

ओ सूरज

ओ सूरज तुम हटो ,मुझे भी
आसमान मे आना है
पँख लगा उड़ जाना है ।
पँख लगा उड़ जाना है ।

चाहे अँधियारे घिर आएँ
सिर फोड़े  तूफान
मेरी राह नहीं आयेगें
नदियों के उँचे ऊफान

ओ चँदा तुम किरन बिखेरों
तारों मे छिप जाना है ।
पँख लगा उड़ जाना है।

ओ सूरज तुम हटो, मुझे भी
आसमान मे आना है
पँख लगा उड़ जाना है ।

यह गीत टिमरनी जिला होशँगाबाद म.प्र.मे सन् 1989 ..90 मे विद्यार्थियो को प्रेरणा हेतु लिखा था ।हमे  आशाओं के सृजन का यह गीत गाते रहना है आपको समर्पित है                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                
       कमलेश कुमार दीवान                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                    
शुभकामनाये सहित

कमलेश कुमार दीवान
प्राचार्य एवम् लेखक
होशंगाबाद म.प्र.
5 सितम्बर 2015
kamleshkumardiwan.blogspot.com

गुरुवार, 27 अगस्त 2015

सोन चिरई आई है ...सावन गीत

सावन गीत ...सोन चिरई आई है


सोन चिरई आई है
अमुआ की डार पर
सावन के झूले
कहीं और डारना ।
सोन चिरई आई है...

माई जा आँगन मे
याद तुम्हारे संग की
भैया की काका की
दादी कै जीवन की
आँऊ मे बार बार
बाते सुन ले मन की
घर की दिवारो मे
यादें है जन जन की
न हो तार तार
होले होले बुहारना
अरजी है मेरी यही
सावन के झूले
द्वार  द्वार डालना

         कमलेश कुमार दीवान
                   3/8/13
 सावन पर बहने भुआ  अपने पीहर को कितना याद करती है यह सब्दो से वयाँ नही होता है पर कविता से..........

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

मुझे उस लौ की चिन्ता है


स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये है यह पर्व मंगलमय हो ।देश के नागरिक सूख समृध्दि से परिपूर्ण हो शांति और अमन चैन रहे । सभी परस्पर सम्मान बनाये रखे यही कामनाये है  ।मंगलकामनाये
मुझे दूख है कि हम सब लोग लोकतँत्र को अपनी अपनी पक्षधरता के साथ किस ओर ले जा रहे है ।हम सब जिम्मेबार है ।कम से कम आजादी के लिये परवान चढ़े बलिदानियो के सपनो को थोड़ा बहुत पुर्ण करते तो अच्छा होता।
मै अपनी बात को अपने गीतो मे कह रहा हूँ यह  गीत 10मई 1989 को लिखा था आज भी प्रासंगिक है ।
 जो आजादी के बारे मे है जरुर पढ़े ...


मुझे उस लौ की चिन्ता है  लोकतंत्र  की चिंता मे एक गीत


सुनहरे स्वपंन मे
जलकर हुए है
खाक परवाने,
मुझे उस लौ की चिंता है
जो बुझती जा रही यारो।

किसी के हाथ में
तस्वीर है कल की
कोई आँसू बहाता 
जा रहा है आज पर,
जिन्हे भ्रम हो गया
होगा ,उजालों का
वही आँगन अँधेरा 
ला रहा है,काज कर

तरसते काम को दो हाथ
उघड़ जाता है तन और मन
करें क्या हर लिवासों मे
अँधेरे ही अँधेरे है।

मुझे उस लौ की चिन्ता है
जो बुझती जा रही यारो ।

 कमलेश कुमार दीवान
  १०मई १९८९

मंगलवार, 4 अगस्त 2015

उगलियाँ ही उगलियौं मे गढ़ रही हैं ऐसा क्यों?

ऐसा क्यों ?


उगलियाँ ही उगलियौं मे गढ़ रही हैं
ऐसा क्यों?
जो लताएँ आज तक
चढ़ती थी ऊचे पेड पर
हर हरा कर टूटते
गहरे कुएँ में गिर रहीं हैं
ऐसा क्यों?

मान्यताएँ फिर हुई बूढ़ी
अन्ध विश्वासों ने बनाएँ घर
अब न मौसम बन बरसतें हैं
स्याह बादल से भयावह डर
एड़ियों पर चोटियों से जो टपकती थी कभी
बूँद श्रम की नम नयन से झर रही है
ऐसा क्यों ?

लोग कहते हैं विवशता से
दोष सारे हैं व्वस्था के
नहीं बदला रूख हवाओं ने
गर्म मौसम की अवस्था से
फिर न दोहराओ सवालो को
आग हो जाते हैं रखवारे
पीढ़ियाँ ही पीढ़ियों से चिड रही हैं
ऐसा क्यों ?

विज्ञ बनते हैं बहुत सारे
व्यापते हैं जब भी अंधियारे
इस लड़ाई का नहीं मकसद
हो गये हैं आज सब न्यारे
कौम, वर्ग, विकल्प और विभीषकाएँ क्या
हर नये सिध्दांत की बाते वही है
खोखली दिक् चेतना से हर शिराएँ थक गई है
ऐसा क्यों ?
              कमलेश कुमार दीवान
                       ६ जनवरी १९८८
                                                                                                                                                                                                           


शनिवार, 23 मई 2015

लोग बदल जाते हैं

मानव जीवन के अनुभव और यथार्थ से उपजी पीढ़ाओं को हम गीतो मे व्यक्त करते है हमे इस सचाई को नही भुलना चाहिये कि दुनियाँ परिवर्तनशील है यहाँ सब कुछ बदलते चला जाता हैा मेरा यह गीत बदलते हुये दुनियावी रिश्तो के मायावी सच को प्रदर्शित करता है देखे ....
लोग बदल जाते हैं..........

लोग बदल जाते हैं

जाने पहचाने
पथ पर चलते
लोग बदल जाते है ।
लोग बदल जाते है ।

साथी का साथ
नही मिलता
अपनो का हाथ
नही बढ़ता
बढ़ता अपेक्षाओ का सागर
खाली खाली रह गई डगर
हम बिखर बिखर कर
सिमट गये
अपनाने हाथ बढ़ाये जब
सपनो का साथ नही मिलता
पल पल क्षण क्षण
ढल जाते है
लोग बदल जाते है
जाने पहचाने
पथ पर चलते
लोग बदल जाते हैं

कमलेश कुमार दीवान
२२ मार्च २०१५

शुक्रवार, 1 मई 2015

"मिलते जुलते रहें समय से "...... एक गीत

आधुनिक युग समय के प्रबँधन का युग है ।लोगो का आपसी मेल मिलाप कम है । परस्पर मिलने जुलने और व्यवहार निबाहने से समाज मे सुख दुख बटते चले जाते है जीवन आसान होता है परन्तू  एक दूसरे से दूरियाँ बढ़ गई है ।मेरा यह गीत समय के साथ कदमताल करते हुये जीवन जीने से सबँधित है ।  कृपया पढ़े ...

"मिलते जुलते रहें समय से "...... एक गीत

मिलते जुलते रहें
समय से
सुख लगता है
ये दुनियाँ तो आसूँ वाली है
फिर भी उत्सव
और खुशहाली है
खिलते खुलते रहें
समय से
दुख भगता है ।
मिलते जुलते रहे
समय से
सुख लगता है ।

करते रहे जुगाड़
लिये फिर आड़
ये झुरमुट कैसे है
चंदन वन मे
चाँद सितारे कहाँ
वहाँ तो पैसे है
रूपया वालो का आसमान
बाकी सब  ख्याली है
चादर सिलते रहे
किस तरह मलाली है
पलते पुसते रहे
समय से
जग सजता है
मिलते जुलते रहे
समय से
सुख लगता है

कमलेश कुमार दीवान
लेखक
12/04/ 2015

रविवार, 19 अप्रैल 2015

एक देश की सार्वभौमिकता सम्प्रभुता काश्मीर के संदर्भ मे

एक देश की सार्वभौमिकता  सम्प्रभुता काश्मीर के संदर्भ मे

विश्व के अनेक देशो मे अनेक प्रकार के संघर्ष लोकतँत्र और प्रशासनिक सत्ताओ से तरजीह नहीं मिलने के परिणामस्वरूप असंतूष्ट गुटो या पृथकतावादी जमातो व्दारा संचालित किये जा रहे है जिनके पास सरकार जैसे हथियार और अग्यात स्त्रोतो से प्राप्त हो रहा धन वल है ।किन्तु प्रश्न है कि जब तक किसी देश के नागरिक शामिल न हो तब तक विदेशी ताकते किसी दूसरे देश के आंतरिक भागो मे अराजकता पैदा नही कर सकती है ।विश्व के कई देश है जो अपने अस्तित्व से पुर्व छोटे देशो मे बँटे हुये थे एक देश बने है उनमे हमारा देश भअरत भी है । एक देश मे दूसरा देश बनाने की कवायदे अंतर्राष्ट्रीय जुर्म होना चाहिये  अन्यथा देश के कई भागो मे नये देश बनाने या फिर भूभागो को दूसरे देश मे मिलाने के आंदोलन प्रारंभ हो सकते है । यह देश की सम्प्रभुता के प्रश्न है ।
  काश्मीर मे पाक झँडे फहराने या भारत विरोधी मुहिम कोई नई बात नही है ।हमे यह समझना चाहिये कि आजादी के आंदोलन  के पश्चात देश निर्माण की प्रकिया मे काश्मीर का भी विलय भारत के साथ हुआ है और यह वैधानिक है ।फिर यह उकसावे और आंदोलन क्यों?हमे देश हित के लिये बहुत सख्त रूख अपनाना चाहिये । हमे याद रखना होगा कि जो समस्या को पैदा करते है उन्ही के अंदर रहते लोग उसका समाधान भी लाते है ,अर्थात् समय के साथ समस्याओं के निदान करना आवश्यक है हमे तुरंत पहल करने की मानसिकता बनानी चाहिये ।

मै यहाँ अपना एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ ...देखे

वतन मे लोक जिंदा है

यह तो सन्मान है मेरे वतन मे लोक जिंदा है
वरन् इस देश को कई देश होते देखना होता ।
जो बर्बर थे लुटे,मिटे कुछ तानाशाही से
बची है राजशाही तब वहाँ जन अधिकार देने से
मेरा यह गान है जनतंत्र सबका हो
तिरँगा एक हो यह मंत्र सबका हो
बँटे क्यों जातियों मे हम
लुटे क्यों साथियों से हम
यही संघर्ष आजादी सबकी बिरासत है
मगर अब वोट की खातिर
बँटे क्यों वादियों मे हम
मुझे यह ग्यान कि मेरे जेहन मे ध्वज तिरँगा है
मुझे अभिमान है मैरे वतन मे लोक सत्ता हैं
यह तो सनमान है मेरे वतन मे लोक जिंदा है ।

कमलेश कुमार दीवान
लेखक
7 अप्रेल 2015

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

बास बास तो बास है

बास
बास तो बास है
होता है सभी जगह
और हमारे आसपास
सभी आम है पर
बास तो खासम खास है
बास तो बास है ।
बास तो बास है
किसी किसी के खास है
सभी डरते है
पानी और पानी
भरते है
एक के बाद एक
आदेशो का पालन करते है
फिर भी सब उदास हैं
आखिर बास तो बास है ।

कमलेश कुमार दीवान
6 अप्रेल 2015 

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

संसदीय लोकतंत्र मे सरकार के अपने कामकाज की समीक्षा (poem hindi geet ) लोकतंत्र का गान....

लगातार समाचारो मे यह बताया जा रहा है संसदीय लोकतंत्र मे सरकार के १०० दिन पूरे हुये वह अपने कामकाज की समीक्षा कर रही है एक कहावत के अनुसार " अढ़ाई कोश चलने" से ज्यादा कुछ नही है ।रात भर पीसकर पारे मे उठाने जैसा है देश मे आजादी के बाद से  ही समानान्तर रूप से बहुस्तरीय सरकारे चल रही है जिसे स्वशासन और पंचायती राज ने और अधिक व्ययसाध्य बना दिया है ।भारतीय लोकतंत्र एक ऐसा पेड़ है जो जनता के लिये बोनासाई और अन्य( नेतृत्व,अफसर बैंकर्स ठेकेदार आदि आदि) के लिये फलदार बगीचा एवम् अमराई है ।
अर्थात् व्यवस्थाओं मे कोई परिवर्तन नही होता है । नौकर शाही रूपी बादवानी घोड़े पर सवारी गाँठना आसान नही है । अतएव सरकारो के बदलने ,उनके कामकाज की समीक्षा करने ,अकाज पर अफसोस जताने  समस्याओं पर सूझाव देने,सरकार व्दारा उसे मानने का विश्वास रखने  का कोई अर्थ नहीं है ।यह एक झुठी दिलासा है  मृगमरीचिका से भी बढ़कर है ।
लोकतंत्र मे राजनैतिक नेतृत्व बहुत लाचार होता है वह चुनाव के मैदान मे धरती से चाँद तारे तोड़ लाने के सपने दिखाता है किन्तु जब स्थाई सत्ता और वास्तविकताओ से सामना होता है तब लाचार हो जाता है ।लोकतंत्र मे नेतृत्व की  विवशताओ को
रेखाँकित करता यह गीत आपके समक्ष सादर प्रस्तुत है  यह लोकतंत्र का असली गीत .. गान है ...मेरे ब्लोग और.वेव पत्रिका अनुभूति मे प्रकाशित है ..
पुनश्चः  उपरोक्त वर्णन के साथ प्रस्तुत है ...

लोकतंत्र का गान....
नित नये नारे उद्घोष ,अपेक्षाये लोकतंत्र का गान....

नित नये नारे ,नए उदघोष ,नव आंकाँछाएँ
हो नही सकती कभी पूरी
 ये तुमसे क्या छिपाएँ  ।

देश का इतना बड़ा,कानून है
भूख पर जिसका असर ,होता नहीं
मूल्य बदले दलदलो ने भी
कांति जैसे जलजलों का
अब असर होगा नहीं
और नुस्खे आजमायें ।
ये तुमसे क्या छिपाएँ।

अरगनी खाली ,तबेले बुझ रहे हैं
छातियों में उग आये स्वप्न
जंगलों से जल रहे है्
तानकर ही मुट्ठियों को क्या करेगें
ध्वज पताकाएँ उठाने मै मरेगें
तालियाँ भी इस हथेली से नहीं बजती
ढोल कैसे बजाएँ।
तुमसे क्या छिपाएँ।
   
कमलेश कुमार दीवान
writer
kamleshkumardiwan.youtube.com


बुधवार, 1 अप्रैल 2015

दुनियाँ के युवाओ प्रतिकार करना सीखो....

दुनियाँ के युवाओ प्रतिकार करना सीखो
१..यह दुनियां उतावले लोगो के लिये नये संसार रचने के लिये भी समर्थ तो है किन्तु धैर्य को अपने अंतस मे समाहित रखने बाले लोग विजयी होते है ।अपने अंदर प्रतिकार की शक्ति को जागृत रखे और धीरे धीरे चलते रहें।
प्राईवेट सेक्टर मे भी कार्य से आपकी ग्रेडिग नही हो रही है वहाँ एक नये तोर तरीको का वासिज्म है ।निजी कम्पनियो मे बेहतर  काम करने वाले अनेक लोग उनसे कम जानकारो से मात खा जाते है।दुखी होने की आवश्यकता नही है ।आपको यह करना है कि अधिकारी व्दारा माँगे जाने पर ही सुझाव दे और कार्य के लिये अपने अधिकारी  को बेहतर आईडिया देते समय यह ध्यान रखा जावे कि क्या वह स्वीकार करेगे ?याद रखे आपके सुझाव पर काम करने वाले लोगो को विदेश भेजा जाता है ,आप जहाँ के तहा बने रहते हो । युवाओ को संगठित होकर अपने विरूध्द चल रहे पेशेवर षड़यँत्रो के खिलाफ आवाज उठाना ही होगा । २९मार्च २०१५

३..३०मार्च २०१५
मेरे बच्चो खतरे कही दूर से नहीं आते वह हमारे आसपास ही मँडराते है ,उनसे बचकर अपनी प्रगति करना ही कामयावी है

मै समझता हूँ कि इतनी समझ उम्र के साथ हर एक मै आ जानी चाहिये ।

शनिवार, 21 मार्च 2015

बच्चे ......थक चुके है बच्चे


हमारे देश मे प्राथमिक से हायर सेकेन्ड्री तक सामान्य शिक्षा से लेकर विशेष विषयो के पाठ्यक्रम तक बच्चो की तरफ खिसकाने की कोशिश निरन्तर होती रहती है नैतिक शिक्षा , किशोर शिक्षा , पर्यावरण शिक्षा ,आपदा प्रबँधन तब कभी अध्यामिक शिक्षा, कृषि एवम् कानून की पढ़ाई भी तो लोकताँत्रिक एवम् कृषिप्रधान देश के लिये जरूरी है ।
शिक्षा के बारे मे  बच्चो पर सर्वाधिक बोझ परिवार की अपेक्षाओं का भी है ,जिसे कविता के माध्यम से रेखाँकित करने का प्रयास किया है कृपया देखें.
बच्चे
थक चुके है बच्चे
पढ़ते पढ़ते अनार आम
A B C D
अलिफ वे
पक चुके है शिक्षक
पढ़ाते पढ़ाते
अनार आम A B C D अलिफ वे ।
नही थके है निर्देश दाता
बच्चो को ये पढ़ाये
बच्चो को येसे पढ़ाये
हाथ धुलवाये
बच्चे भूखें है
उन्हे खाना खिलाये ,पानी पिलाये
बच्चे थक रहे हैं
आगामी दिनो मे
शौच कराने
पैर दवाने आदि आदि के
 निर्दैश भी  आयेगे
खाना खिलाने ,पानी भरने, पिलाने
बर्तन माँजकर उन्हे सहेजकर रखने
सब कुछ दूसरे दिन के लिये तैयार करने
रपट तैयार कर भेजने
कितना बढ़ गया है काम का बोझ
बच्चो पर किताबो के बोझ कि चर्चा
शिक्षको की लदान पर कोई बहस मुबाहिसे न हो
तब स्कुल कैसे चलेगें ।
कमलेश कुमार दीवान
07मार्च 2014

बुधवार, 18 मार्च 2015

बादर मत बरसो


मौसम खराब है बर्फवारी ओले और बरसात का आलम मार्च माह मे बरसात जैसा है फसले तबाह हो गयी है आवाम अपने भविष्य को लेकर चिंतित है बादलो के लिये यह  अनुरोध गीत भेज रहा हूँ प्रार्थना करे की पृ्थ्वी पर जीवन की सृष्टि आसान बनाये ,सादर समर्पित है ।

बादर मत बरसो

बादर मत बरसो
दिन रेन
बादर मत बरसो
दिन रेन ।
जिन अखियों मे
नीर न आये
उन्ही बसत है चैन
बादर मत बरसो
दिन रेन ।
ऊँचे पर्वत
पेड़ विराजत
काटे से मर जेहें
बहती नदियाँ
निर्मल रहती
रूकी थकी बेचेन
बादर मत बरसो
दिन रेन

कमलेश कुमार दीवान
4  मार्च 2015

मंगलवार, 3 मार्च 2015

नए लोग हैं


भारत मे लोकतंत्र है सत्ता प्रतिष्ठानो पर काबिज होते ही लोग नये जुमले गढ़ते है
नवीन विचार फेकते है नये प्रभाव उत्पन्न करने की कोशिश करते है जद्दोजहद मे शायद उनके प्रभाव से उत्पन्न होने वाली परेशानियो के बारे मे विचार नहीं कर पाते है यह कविता एक समझाईश भर है कृपया पढ़े ...

नए लोग है

नए लोग हैं
नव विचार तो देगें ही
चाहे फिर जितने सबाल हो।
नए लोग है ।
देश काल का ध्यान न आये
ऐसा भी क्यों
बहकी हुई हवा भरमाये
ऐसा ही क्यों
नये बोध है
नये शोध है
नये लोभ है
नई पौध है
शिष्टाचार निबाहगें ही
चाहे फिर सबसे बँचित हो
नये लोग है ।
नव विचार तो देगें ही
चाहे फिर जितने सबाल हों।

 कितना मुश्किल लोकतंत्र है
पाँच वरष ढेरो प्रपँच है
थोड़ा सहन करो  तब देखो
सुख सुविधाये अनंत है
नये दौर है
नव करार तो होगे ही
चाहे फिर
जितने मलाल हो ।
नये लोग है
नव विचार तो देगें ही
चाहे फिर जितने सबाल हो ।

कमलेश कुमार दीवान
लेखक
दिनाँक..3मार्च 2015
mob.no.9425642458
email..kamleshkumardiwan@gmail.com

शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

बसंत के बारे मे

बसंत शुरूआत होती है जीवन के प्रस्फुटन की ।बसंत नव जीवन के  आभास  की प्रतिष्ठा है ।
बसंत त्याग और बलिदान की पराकाष्ठा है ।बसंत एक अनुभव है सुख देने दुख सहन करने का ।
बसंत के बारे मै यह कहा जा सकता है कि बस.. अंत ....पर यह एक जज्वात भर है ।
बसंतपंचमी के अवसर पर शूभकामनाये । और यह गीत प्रस्तुत है ..
बसंत के बारे मे

ऐसे बसंत आये।
ऐसे बसंत आये।

मौसम हो खुशुबगार
और पँछी चहचहाये ।
नदिया बहे और खेतों मे
धानी चुनर लहराये।

ऐसे बसंत आये ।
ऐसे बसंत आये ।
 
 कमलेश कुमार दीवान
        27/11/09

गुरुवार, 22 जनवरी 2015

मै चलता रहा

मै चलता रहा

मै चलता रहा अजनवी रास्तो से
गजब क्या हुआ ,मेरी मंजिल ही आई

मेरा वास्ता रहनुमाई से ही था
करूँ क्या वयाँ जगहँसाई से ही था
कदम दर कदम लोग मिलते गये है
बना कारबाँ ही अजब हादसो से।

मै चलता रहा अजनबी रास्तो से ...।

मुझे भी तलाशा गया हाशियों मे
अकेला खड़ा रह गया साथियों मे
हर एक खाने मे टुकड़े टुकड़े हुआ हूँ
मिला कतरा कतरा मै उन बस्तियों मै।

मै चलता रहा अजनबी रास्तो से ...।

कमलेश कुमार दीवान
अप्रेल १९९१
mob.no.9425642458
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गुरुवार, 1 जनवरी 2015

नव वर्ष के शुभ अवसर पर मेरा यह गीत आप सभी को सादर समर्पित है

नया वर्ष शुभ हो ।

नया वर्ष हो, नये हर्ष हों
हो नई खुशी, नवोत्कर्ष हो

नई सुबह हो,नयी शाम हो
नई मजिंलें,नए मुकाम हो

नए लक्ष्य हों ,नए हौसले
हो नई दिशा, नए काफिले

नए चाँद तारे ..ओ आफताव
नई दृष्टियाँ ,नयी हो किताब

नये मिजाज हो, नये ख्वाब हों
नई हो नदी...    नयी नाव हो

नये वास्ते नए हैं सफर
नये अर्थ जिनकी तलाश हो

नई भोर की सौगात हो .
नई भोर की सौगात हो ।

शुभमंगलकामनाओं सहित।

        कमलेश कुमार दीवान
             लेखक
mob.no.9425642458
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बुधवार, 31 दिसंबर 2014

New Year poems

              नव वर्ष 2015

1..आओ नव वर्ष
    तुम्हारा बँदन ।

   खुश हो सब
   सुखी रहे
  फिर हो अभिनंदन ।
काल की कृपा होगी
सारे सुख पायेंगे
पीकर हम हालाहल
अमृत बरसाएंगें
धरती गूड़ धानी दे
पर्वतो पर पैड़ रहे
रेलो मे सड़को पर
हम कसबकी खेर रहे
माँग मे सिदुँर रहे
 भाल पर तिलक चंदन
आओ नव वर्ष
 हम करे वँदन

2..नव वर्ष

सुख बिखर सिमटते रहे
तिमिर घन
घटते बढ़ते रहें
प्रण टूटे ,
मौन और विस्तृत
स्वीकारे उत्कर्ष ,
नये आये है,वर्ष ।
नव वर्ष पर शुभकामनाये ,सूखी और समृध्दशाली रहे
शुभ मँगलकामनाओ सहित  सादर समर्पित है।
    कमलेश कुमार दीवान
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बुधवार, 22 अक्टूबर 2014

दीपावली के पावन पर्व

दीपावली के पावन पर्व
दीपावली के पावन पर्व पर शूभकामनाये ।हमारी सृष्टि मे चहुँ और अँधकार है जिसे सूरज का प्रकाश उजालो से भरता है ।ज्योति पर्व समस्त चराचर मे व्याप्त अँधकार को उजियारे मे तब्दील करने का पर्व है ।हम सब सुखी रहे ,समृध्दशाली बने और जीवन पथ पर सभी को साथ लेकर मँजिल की और कदम बढाते चले । मंगलकामनाये  के साथ यह  स्वरचित कावय पंक्तियाँ सादर समर्पित है ....

दीप की तरह जले
सीप की तरह ढले
अनंत से प्रकाश पा
बढे चले ,बढे चले
मँजिले तो आयेंगी
मँजिले तो आयेंगी ।

ये पथ रहे प्रकाश मे
उल्लास हो आभास मे
आनंद का एहसास हो
दीप के आकाश मे
इन पर्वतो के पार भी
कोई न कोई देश है
अँधेरो के नकाब मे
कोई न कोई वेष है
चढे चलो चढे चलो
बढे चलो बढे चलो ।

कमलेश कुमार दीवान (लेखक)
होशंगाबाद म.प्र
22oct 2014
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रविवार, 22 जून 2014

पतझड़ के लिये गीत

पतझड़ के लिये गीत

अब फूले है,पलाश
सरसो भर आई है
कोयलियाँ कुहक रही
बादलिया छाई है ।

आम्र बौर लद आये
झर रहे है नीम पात
पछुआ पुरवाई भी
बहती है साथ साथ
मौसम की आहट है
पतझड़ फिर आई है।

वन प्रांतर सुलग रहे
झुलस  रहे गात गात
महुये के पेड़ों मे
आई तरूणाई है ।
अब जिनको है तलाश
वर्षो की पायी  है ।

अब फूले है फलाश
सरसों भर आई है।

कमलेश कुमार दीवान
9/03/2010



मंगलवार, 3 जून 2014

बच्चो तुम्हे

बच्चो तुम्हे

बच्चो तुम्हे
आकाश की जरुरत थी
हम तुम्हे भगदड़ ,कोलाहल और
दे रहे है भीड़ भरी सड़के
सब कुछ बदल दिया है
विग्यान ने
क्रमबध्द ग्यान से हमारे आसपास
सन्नाटे गहरा गये है
ऐसे वियावान मै
हमारे साथ सिर्फ ईश्वर हो सकता है
आदमी नही ।

कमलेश कुमार दीवान
28.10.1999

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शुक्रवार, 2 मई 2014

अखबारो मे आम हुये है


अखबारो मे

अखबारो मे आम हुये है 
खास खास चरचे 
खास खास चरचे ।

दीवारो पर लिखे इबारत 
अबकी बारी इनकी हैं
ढोल मढ़ैया ,चौसर चंका 
सारी बाजी इनकी है 
हरकारो के दाम हुये है
सड़को पर पर्चे ।
खास खास चरचे ।

कीमत बढ़ी आसमानो सी 
सुलतानो के होश उड़े
दरबारी को नींद न आई 
रहे ऊँघते खड़े खड़े 
लोकतंत्र मे आई खराबी 
फिर जनता पर दोष मढ़े
द्वार द्वार बदनाम  हुये है 
दौलत और खर्चे ।
खास  खास चरचे ।

अखबारो मे आम हुये है
खास खास चरचे 
खास खास चरचे ।

कमलेश कुमार दीवान 
दिनाँक २७ । १०। १९९८

मंगलवार, 14 जनवरी 2014

पतंग उड़ाओ

मकर सक्रांति पर्व और उत्तरायण के सूर्य आपके जीवन पथ को आलोकित करे ।सुख समृध्दि और उन्नति के नवीन मार्ग प्रशस्त करे शुभकामनाये है ।मकर सक्राति के पर्व पर शुभकामनाओ सहित मेरा यह गीत सादर प्रस्तुत है जो आपके लिये है ..



 पतंग उड़ाओ

अपनी पतंग उड़ाओ
आसमान देखकर
तिल ताड़ मत बनाओ
आसमान देखकर
यूँ ही नहीं माजा से
कटती है  उंगलियाँ
अपनी पतंग लड़ाओ
भाव ताव देखकर ।

जब भी उड़ाओ दूर तक
दिखती रहे पतंग
हाथों मे नियंत्रंण हो
चरखा हो संग संग
थोड़ी सी ढील से ही
घूमेगी चारो ओर
फिर देखते   ही
युँ ही कट जायेगी पतंग ।
संग साथ गुनगुनाओ
आसमान देखकर
अपनी पतंग उड़ाओ
आसमान देखकर ।

कमलेश कुमार दीवान
14/01/14

सोमवार, 25 नवंबर 2013

मतदान दिवस


"लोकतंत्र मे जनता का मतदान करना महत्वपूर्ण है मेरा यह प्रेरणा गीत सादर समर्पित है "

मतदान दिवस

करो मतदान भाईयो
तजो अभिमान भाईयो
आज मतदान दिवस है
आज मतदान दिवस है ।


लोकतंत्र के इस उत्सब मे
हो सबकी भागीदारी
आजादी की यही मान्यता
हो सबकी पहरेदारी
आओ आज मनाये उत्सव
अधिकारो के शस्त्र का
रोजगार रोटी से लेकर
कोटि कोटि के वस्त्र का

लोकतंत्र के जन्मदिवस का
आज करे गुणगान साथियो
संविधान की मंशा के
अनुरूप करे मतदान  साथियौ

करो मतदान भाईयो
तजो अभिमान भाईयो
आज मतदान दिवस है
आज मतदान दिवस है ।

कमलेश कुमार दीवान
25/11/2013

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2013

। धीरे धीरे निजाम बदलेगा ।

दुनियां भर मे लोकतँत्र  नेतृत्व के खराब प्रर्दशन के कारण
विश्वसनीयता की कसौटी पर है  जनता बार बार सरकारे बदलती है पर
परिवर्तन नही हो पाता है .आशाओं को सृजित करना जरूरी है ,मेरी यह नज्म  लोकतंत्र
के लिये सादर समर्पित है .....कमलेश कुमार दीवान

धीरे धीरे निजाम बदलेगा

धीरे धीरे निजाम बदलेगा
खास बदलेगा आम बदलेगा
होते होते तमाम बदलेगा ।
धीरे धीरे निजाम बदलेगा ।

जो कश्तियाँ  फिर  समुंदर  की  ओर आई है
जो करते रहते काफिलों की रहनुमाई  है
बदल रही है फिजाएँ   तो ढल रहे मौसम
उठाये रख्खो ये परचम मुकाम बदलेगा  ।
धीरे  धीरे  पैगाम बदलेगा ।
धीरे धीरे निजाम बदलेगा ।

अभी हवाये न जाने क्या रुख ,अख्तियार करे
निकल पड़े तो कातिल उन्ही पे बार करे
खबर है दुश्मनो को बन रही है बारूदें
चलेगी गोलियाँ जो दोस्तो पे बार करे ।
बनाये रखोगे दम खम तो काम बदलेगा
धीरे धीरे निजाम बदलेगा ।

आज है कल वही नही रहता
जिन्दादिल जुल्म यूँ नही सहता
जो किया करते है बदनाम बस्तियो को सदा
जरा सा ठहरो उनका भी नाम बदलेगा ।

अमन की राह मे चलते रहो, चलते ही रहो
धीरे धीरे पयाम बदलेगा
गोया किस्सा तमाम बदलेगा ।

खास बदलेगा आम बदलेगा
होते होते तमाम बदलेगा ।
धीरे धीरे निजाम बदलेगा ।

      कमलेश कुमार दीवान

Dheere Dheere Nizaam Badlega

शनिवार, 24 अगस्त 2013

महासागर के आदेश...... सागर ने बादलो से कहा ( एक गीत)

महासागरो को स्वच्छ जल आपूर्ति  पूर्व की तरह नही हो पाने के परिणामस्वरूप समुद्र
देवता शायद कुपित हो और बादलो को आदेश दे रहे है कि वहा वरसो जहा जल रूका रहता है
सूर्य देव भी अधिक ताप से उत्तरी गोलार्ध को जता रहे है अर्थात् आज समूचा जल थल और वायुमंडल
मौसम की उथलपुथल से प्रभावित हो रहा है अधिक बरसात अनेक देशो मे भयावह बाढ आ रही है तब कही अधिक तापमान से जनजीवन अस्तव्यस्त  हो गया है ,निवेदन है कि महासागरो की और जाने वाले स्वच्छ जल की निश्चित आपूर्ति बनाये रखे ।मेरा लेख जनसत्ता मे दिनाँक23/4.1998  प्रकाशित हुआ था शीर्षक " समंदरो को भी चाहिये मीठा पानी "
इस संबंध मै यह एक गीत है .....
महासागर के आदेश

सागर ने बादलो से कहा
जाओ धरा पर
बरसा हुआ पानी जहाँ
ठहरा हुआ मिले ।

सब तार तार हो रहा है
मेरा आशियाँ
बहती  हुई नदी से
नही पा रहा हूँ जल

सूरज की शिकायत है
कि उठती नही है भाप
कैसे बनाऊँ बादलो को
सोचता हर पल ।

मे तरसता रहा
एक नदी के लिये
सव ने पानी चुराया
आदमी के लिये

इसलिये चाहता जाके
बरसो वहाँ
जहाँ वर्षा हुआ पानी
ठहरा  मिले ।

सागरो ने कहा
बादलों से यही
जाओ वरसो जहाँ
पानी ठहरा मिला ।

बुधवार, 7 अगस्त 2013

सावन गीत ... सोन चिरई आई है

सावन गीत ...   अरजी है मेरी

सोन चिरई आई है
अमुआ की डार पर
सावन के झूले
कहीं और डारना ।
सोन चिरई आई है...

माई जा आँगन मे
याद तुम्हारे संग की
भैया की काका की
दादी कै जीवन की
आँऊ मे बार बार
बाते सुन ले मन की
घर की दिवारो मे
यादें है जन जन की
न हो तार तार
होले होले बुहारना
अरजी है मेरी यही
सावन के झूले
द्वार  द्वार डालना

         कमलेश कुमार दीवान
                   3/8/13


रविवार, 9 जून 2013




लो आई गर्मियाँ

विछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ ।

लो आई गर्मियाँ ।
सुर्ख ,कोमल,लाल पखुरियाँ
लिए रहती,
अनेकों तान छत वाली
बहुत ऊँची,
गगन छूती डालियाँ
खिल उठी हैं
हो के मतवाली।

छा गई मैदान पर,
रक्तिम छटाएँ
चलो नंगे पाँव तो,
वे गुदगुदाएँ
खदबदाती सी खड़ी
वेपीर लगती है,
खुशी के पल भरा पूरा
 नीड़ लगती हैं।

ग्रीष्म भर उड़ती रहेगीं रेशे ..रेशे
जो कभी विचलित,
कभी प्रतिकूल लगती है।

विछ गयें हैं शूल,
तन...मन के
लो आई गर्मियाँ ।

विछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ ।
  कमलेश कुमार दीवान
     १० मार्च २००८
नोटःः यह गीत ग्रीष्म ऋतु मे सेमल के पेड़ के फूलने फलने
       और बीजों को लेकर उड़ते सफेद कोमल रेशों के द्श्य
          परिस्थितियों पर लिखा गया है ।
                अनुभूति मे नवगीत की पाठशाला मे प्रकाशित     

शुक्रवार, 24 मई 2013

एक अकेला हंस


एक अकेला हंस

एक अकेला हंस
युगो से
सैर कराता रहा काग को
पर कौऔ ने
 डींग हाँकना
जारी रख्खा है ।

रोज बताते
नये तरीके
ऐसे हम उडान भरते है
कभी पँख फैला देते है
और सिमट गोता भरते हैं

जब बारी आती उडान की
पीठ हँस की बैठ लिये है
करते मानसरोवर यात्रा
क्रम अब भी
जारी रख्खा है ।
एक अकेला हंस...

कमलेश कुमार दीवान
२२।०५।१३

गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

नव वर्ष गीत आओ नव वर्ष


नव वर्ष  गीत

आओ नव वर्ष
हम करे बँदन।
खुश हो सब
सुखी रहें
हो अभिनंदन ।।
आओ नव वर्ष....

काल की कृपा होगी
सारे सुख पायेगें
पीकर हम हालाहल
अमृत बरसायेगें ।
धरती गुड़..धानी दे
पर्वतों पर पेड़ रहें
रेलो मे सड़को पर
हम सबकी खेर रहें।
माँग मे सिंदूर रहे
भाल पर तिलक चंदन
आओ नव वर्ष
हम करे बँदन ।

नूतन वर्ष मंगलमय हो ।शुभकामनाओ सहित..

कमलेश कुमार दीवान
होशंगाबाद म.प्र.
kamleshkumardiwan.youtube.com

॥ ॐ श्री गणेशाय नमः ॥

भारतवर्ष के नव संवत्  विक्रम संवत् २०७०
 गुड़ी पड़वा चैत्र शुक्ल प्रथम के पावन पर्व पर
शुभमंगलकामनाएँ है। देशवाशियों को यह गीत
सादर समर्पित है......

नव संवत् शुभ..फलदायक हों

नव संवत् शुभ..फलदायक हों।
ग्रह     नक्षत्र
काल  गणनाएँ
मानवता को सफल बनाएँ
नव मत..सम्मति  वरदायक हो।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो।

जीवन के संघर्ष
सरल हों
आपस के संबंध
सहज हों
नया भोर यह,नया दौर है
विपत्ति निबारक सुखदायक हो।

नव संवत् शुभ...फलदायक हो ।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो ।

       कमलेश कुमार दीवान
           चैत्र शुक्ल एकम् संवत् २०७०

बुधवार, 27 मार्च 2013

होली के रंग


होली के रंग

होली के रंग छाँयेगे
कोई न हो उदास ।
मौसम ही सब समायेगे
कोई न हो उदास ।

नदियाँ ही रँग लाई हैं
तितली के पँखों से
ध्वनियाँ मधुर सुनाई दें
पूजा के शँखो से
पँछी भी चहचहायेगे
आ जाये आस पास ।
होली के रँग छायेगे
कोई न हो उदास ।

पुरवाईयो ने बाग बाग
पात   झराये
बागो से उड़ी खुशबूओं ने
भँबरे   बुलाये
अमिया हुई सुनहरी
मौसम का  है अंदाज ।
बोली के ढँग आयेगें
कोई न हो उदास ।
होली के रँग छाँयेगे
कोई न हो उदास ।

कमलेश कुमार दीवान
26/02/10

मंगलवार, 13 नवंबर 2012


पहले अपना दिया जलाओ

आओ जयोति पर्व मनाएँ
पहले अपना दिया जलाये ।
पहले अपना दिया जलाये ।।
दीपक से डरता अधियारा
दीपक से होता उजियारा
दीप दीप बाती बाती मे
साहचर्य क्या पता लगायें .
आओ अपना दिया जलाये ।

कमलेश कुमार दीवान

गुरुवार, 1 नवंबर 2012


बंदे मध्य प्रदेश

बंदे मध्य प्रदेश
बंदे मध्य प्रदेश ।।
चम्बल केन ,सोन नर्मदा
विन्ध्य सतपुड़ा कैमूर सर्वदा
मालवा निमाड़ प्रदेश
बंदे हृदृय प्रदेश ।
बंदे मध्य प्रदेश ।।

हरित आवरण
उज्वल नदियाँ
उपजाऊ मैदान
गाँव गाँव और
शहर शहर हैं
भले भले इन्सान
रीति निति के
कर्ता धर्ता
बसते है इस देश।
बंदे मध्य प्रदेश ।।

यह स्वरचित गीत प्रदेश को सादर  समर्पित है।।

        कमलेश कुमार दीवान

शनिवार, 11 अगस्त 2012

श्री कृष्ण के लिये एक प्रार्थना गीत सादर समर्पित है "श्याम मोरे श्याम मोरे श्याम मोरे (प्रार्थना भजन)


श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व


जो अनादि है,अजन्मा है ,अनंत आकाश का सृजनकर्ता एवम् नियंता है उसके स्वरूप मे
श्रीकृष्ण भगवान का जन्म कंस के कारगार मे दिन व्यतीत करते हुये देवकी॑-बसुदेव जी
की याद दिलाते है उनकी परिस्थितियाँ हमे जीवन संघर्षों की प्रेरणा देती है ।
          लोकतंत्र ,समाज और अर्थव्यवस्थाओं सहित शासन व्यवस्थाओं की जो चुनौतियाँ
आधुनिक सभ्यताओं के समक्ष आ रही है उससे हमे लगता है कि भारतीय समाज को पशुपालन
की तरफ लौटना होगा ,तभी हम समृध्द बने रह सकते हैं ।
श्री कृष्ण के लिये एक प्रार्थना गीत सादर समर्पित है  "श्याम मोरे श्याम मोरे

श्याम मोरे (प्रार्थना भजन)

श्याम मोरे ,श्याम मोरे ,श्याम मोरे
फिर तुझे आना पड़ेगा 
फिर तुझे आना पड़ेगा ।

आज फिर मीरा को
विष देकर ,सुधारा जा रहा है 
द्रोपदी के चीर से ,
पर्वत बनाया जा रहा है ।

सूर,उद्वव,नँद-जसुमति
देवकी बसुदेव सब है 
पर बहुत है कंस,
फिर कारां बनाया जा रहा है ।

रूख्मणि -राधा अकेली 
गोपियों की बँद बोली
ओ कन्हैया कालिया वध
के लिये आना पड़ेगा ।

श्याम मोरे,श्याम मोरे,श्याम मोरे 
फिर तुझे आना पड़ेगा
फिर तुझे आना पड़ेगा।

कमलेश कुमार दीवान
21/09/1998 

सोमवार, 30 जुलाई 2012

Kamlesh Kumar Diwan: सावन आये रे सावन आये रे

Kamlesh Kumar Diwan: सावन आये रे सावन आये रे

सावन आये रे सावन आये रे


रक्षा बँधन का पावन पर्व हमे निर्मलता प्रदान करे ,ताकि
हम लोकतंत्र, भारतीय संस्कृति और समाज के साथ साथ
पारिवारिक जीवन मूल्यो के प्रवाह को बनाये रखने मे समर्थ
हो सके ।
शुभकामनाओ सहित
स्वरचित गीत आप सभी को सादर समर्पित है..

सावन आये रे

सावन आये रे....
बादल बिजुरी और हवायें
घिर आये घनघोर घटाएँ
घन बरसाएँ रे...
सावन आये रे....।

सरवन के कच्चे धागों से
बहना करे श्रृंगार भाई का
जग जाने भारत की रीति
मूल्य जाने बहना कलाई का
सब मन भाये रे.....
सावन आये रे ...।

कमलेश कुमार दीवान
24/08/2010
होशंगाबाद म.प्र.

रविवार, 29 जुलाई 2012

AASHAON ka geet (HINDI )

     
               O sooraj tum hato -mujhe bhee
               aasman main aana hai
              pankh laga ud jana hai  .
          
              Chaye andhiyare ghir ayen
             sar fode  toofan
            maire raah nahi ayenge
            nadion kai uche uafan

            O chanda tum kiran bikhero
             taro main chip jana hai
            O sooraj tum hato mujhe bhi---- kamleshkumardiwan(srachit)

              जनसंख्या शिक्षा पर कविता

               छोटा सा आशियाँ


           आओ एक छोटा सा
            आशियाँ बनाये ।
          आओ एक छोटा सा
             आशियाँ बनाये ।
          भीड़ भरी सड़को पर
                चलना दुश्वार है
             रेलो की छत पर भी
                   आदमी सवार है
                पानी की धार नही
                रोटी रोजगार नही
                 छोटे से आँगन की
                      भूमिका बनाये

                आओ एक छोटा सा
                 आशियाँ बनाये ।

                कमलेश कुमार दीवान


                नोट॥.....यह कविता सन् १९९२ मे शासकीय शिक्षण महाविद्यालय खंड़वा  म.प्र.मै आयोजित           कविता प्रतियोगिता   के  अवसर पर  छात्राध्यापक के रूप मे सुनाई थी ।





रविवार, 25 मार्च 2012


कुछ तो अच्छा है

साधु भाई..... ,
कुछ तो अच्छा है
साधु भाई ,कुछ तो अच्छा है ।

दिन है और रात होती है
धरती पर जीवन ज्योति है
मौसम और रिश्ते बदले हैं
आपस मे बाते होती है
समय बावस्ता है
साधु भाई ....,
कुछ तो अच्छा है ।

कल के काम आज करना है
क्षण जीना क्षण क्षण मरना है
कठिन परीक्षा है
साधु भाई सब कुछ अच्छा है ।

कमलेश कुमार दीवान
18/12/2011

रविवार, 5 फ़रवरी 2012


आओ प्रगति करे हम

आओ प्रगति करे हम ...

धरा छोड़ आकाश ओर
जाने से क्या होगा
बेघरवार न जाने कितने
भुवन बशाने से क्या होगा .
आओ प्रगति करे हम....।

आओ प्रगति करे हम ....
खेतो को धानी चुनर दो
पर्वत को पेड़ों से ढक दो
पक्षी करें पेड़ पर कलरव
नदियों मे पानी बहने दो
खेले म्रगछौने घर घर मे
ऐसी गति करे हम
आओ प्रगति करे हम ...।

कमलेश कुमार दीवान
1/5/2010

रविवार, 29 जनवरी 2012


बसंत के बारे मे

ऐसे बसंत आये।
ऐसे बसंत आये।

मौसम हो खुशुबगार
और पँछी चहचहाये ।
नदिया बहे और खेतों मे
धानी चुनर लहराये।

ऐसे बसंत आये ।
ऐसे बसंत आये ।
 
 कमलेश कुमार दीवान
        27/11/09

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

ॠतु गीत  ..शीत

सर्द हवाएँ

अबकी बार,बहुत दिन बीते
लौटी सर्द हवाओं को ।
लौटी सर्द हवाओं को ।

काँप गई थी ,धूँप
चाँदनी कितनी शीतल थी
नदियाँ गाढी हुई
हवाएँ बेहद विचलित थी।

व्यर्थ हुये आलाव
आँच के धीमे होने से
फसलें ठिठुरी और फुगनियाँ
सहमी ..सहमी  सी ।

अबकी बार बहुत दिन सहते
रहे विवाई  पावों   की।

अबकी बार बहुत दिन बीते
लौटी सर्द हवाओं को।
लौटी सर्द हवाओं को।
      कमलेश कुमार दीवान
         ८ जनवरी ९५